Tuesday, February 24, 2015

धर्म, धर्म प्रचार और धर्मांतरण एक आम स्त्री की नज़र से

अभी संपन्न हुए विश्व पुस्तक मेले से लौटते हुए मेरे साथ कई पसंदीदा किताबों के साथ हिंदी में अनूदित 'पवित्र क़ुरान' भी थी जो मुझे मुफ्त में मिली!  इसके अतिरिक्त इस्लाम से सम्बंधित कुछ छोटी बुकलेट भी जो वहां आने जाने वालों को साग्रह भेंट की जा रही थी!   ये पहले भी होता रहा है!  इससे पहले तो एक बार मैं मेले से खरीद कर अपने मुस्लिम मित्र को भेंट भी कर चुकी हूँ!  पिछले साल वाली क़ुरान पढ़ने के बाद मेरी बेटी की एक दोस्त को भेंट कर दी गई!  ये मुफ्त में किताब बाँटने वालों को देखकर मेरी स्मृतियाँ अतीत की ओर सफर पर निकल जाती हैं और मुझे स्कूल का वक़्त याद आता है!  स्कूल काफी दूर था और पैदल लौटते हुए एक जगह ऐसी आती थी जहाँ आमने-सामने दो स्कूल बने हुए थे!  छुट्टी के वक़्त वहां छात्रों का हुजूम होता और अक्सर एक स्कूल के बाहर ईसाई धर्म  संबंधित सामग्री वितरित करने वाले लोग  खड़े होते!  कुछ बच्चे मुंह बिचकाते और कुछ उन्हें लेकर थोड़ी दूर जाकर फेंक देते!  कुछ मेरी तरह जिज्ञासु होते जो आग्रहपूर्वक लेकर बैग में रख लेते!  मेरी परवरिश ऐसे माहौल में हुई थी जहाँ दूसरे धर्मों को लेकर विचारों में कोई संकीर्णता या संकुचन नहीं था, दूसरे मुझे पढ़ने की लत थी, मुझे सब जानना था, सब कुछ तो मैं बड़े शौक़ से वह सामग्री जिसमें कुछ किताबें, छोटी बुकलेट, पैम्फलेट, धार्मिक किताबों के कैटेलॉग आदि हुआ करते थे, संजो लेती और पहली फुर्सत में सब पढ़ डालती!





उस वक़्त शायद मैंने ऐसा न भी सोचा हो पर आज सोचती हूँ तो पाती हूँ कि वे सारी किताबें ईश्वर के पुत्र प्रभु यीशु के  चमत्कारों से भरी होतीं!  चमत्कारपूर्ण ढंग से रोटी के टुकड़ों और थोड़े से शायद भेड़ के  दूध से ढेर से लोगों का पेट भरते यीशु जिन्हे पढ़कर अक्सर मुझे 'फिल्मन और  बांसिस' की कहानी याद आ जाती जहाँ जग जैसे एक अक्षय पात्र की तली में  दूध का छोटा फव्वारा होता जो कभी उसे खाली नहीं होने देता था या फिर याद आता द्रौपदी का अक्षय-पात्र जो दुर्वासा मुनि की पूरी मण्डली का पेट भर देता!   तो ये चमत्कार से भरी किताबें जहाँ धर्म के बारे में कम लिखा होता था पर गरीबी में डूबे तीसरी दुनिया के मज़लूम  लोगों के लिए ये एक आह्वान होता कि चले आओ, यीशु की शरण में तुम्हारे सब दुःख दूर करेगा!  यहाँ धर्म की गूढ़ बातें कम थीं, पूरा जोर इसी बात पर होता कि यीशु ही सब दुखों और परेशानियों से निजात दिला सकता है!

मैंने गीताप्रेस की सस्ते दामों वाली किताबों को भी खूब देखा पढ़ा है पर मुझे कभी समझ नहीं आया कि ये कैसा धर्म प्रचार है, कितनी आतुरता है कि जहाँ चुम्बक की तरह दूसरे धर्मावलम्बियों को अपनी ओर खींचने की होड़ लगी है!  हिन्दू धर्म की धार्मिक किताबें भी ऐसी ही चमत्कारपूर्ण घटनाओं से भरी हुई होती हैं!  यहाँ जातीयता अपने सबसे अधिक घृणित रूप में पाई जाती हैं किन्तु मूल रूप से हिन्दू धर्म में उस कट्टरता का सर्वथा अभाव देखा मैंने जहाँ दूसरे धर्मों को बुरा ठहराया जाये या उनसे दूरी बनाई जाये और उन्हें हिन्दू धर्म को अपनाने को डर, आग्रहपूर्ण तरीकों या प्रलोभनों का सहारा लिया जाये!  इसके ठीक विपरीत हिन्दू धर्म से   बौद्ध, जैन, सिख धर्म और कितने ही पंथों आदि के रूप में शाखाएं समय समय पर निकलती रही!   जातीयता, भेदभाव,  छुआछूत जैसी तमाम घृणित कुरीतियां, अशिक्षा  और गरीबी आदि कई कारण रहे जो हिन्दू धर्म की तथाकथित निचली जातियों को धर्मांतरण के लिए प्रेरित करते रहे!  और बहुधा यह जबरन भी हुआ पर हिन्दू धर्म की ओर से धर्मांतरण के इतने आग्रहपूर्वक प्रयास किये गए हों मैं अक्सर ऐसे उदाहरणों की खोज में रहती हूँ!

क़ुरान  की बात की जाये तो यहाँ अक्सर इस्लाम के साथ साथ गैर-इस्लामी धर्म और लोगों की बात बार-बार कई तरीकों से  और कई सन्दर्भों में  आती है!  हमारे  एक रोशन ख्याल मुस्लिम पडोसी और पारिवारिक मित्र जो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे,  ने कई बार इसकी चर्चा की!  वे बताते थे कि क़ुरान में जेहाद या जिहाद उस तरह से वर्णित नहीं है जैसा और जितना हदीस में है!  उनके अनुसार हदीस मुहम्मद साहब के कई सौ साल बाद उतारी गई!  इस बात के सही या गलत होने से कहीं ज्यादा ये सोचा जाना जरूरी है कि घर वापसी जैसी बातें, हिन्दू होने का तथाकथित गर्व, मंदिर वहीँ बनाएंगे जैसी तमाम बातों से मुक्त रहा है हमारी पीढ़ी का बचपन जहाँ हिन्दू धर्म अपनी सहिष्णुता के लिए सचमुच गर्व का ही कारण था! घर वापसी जैसे प्रयास हास्यास्पद कहे जा सकते हैं जब तक हिन्दू धर्म अपने ही धर्म के लोगों को जातीय वर्गीकरण से मुक्ति दे उन्हें सम्मानजनक परिस्थितियों में जीने का अवसर प्रदान न करे!  आप कितनी भी वापसी कराएं, ये धर्मान्तरण उसी गति से होते रहेंगे जैसे अतीत में होते आएं हैं, जरूरत है तो इन तमाम बातों से ऊपर उठकर निचले तबके के उद्धार के लिए सुनियोजित तरीके से बराबर और समुचित प्रयास करने की ताकि समानता से जीने के अवसर सभी जातियों को  बराबर मिले!  जब एक ही धर्म के लोग समान धरातल पर खड़े हो जीने के समान अवसर और सम्मान पाएंगे तभी  घर वापसी  और धर्मांतरण जैसे शब्द अतीत की विषयवस्तु बन सदा के लिए अप्रासंगिक हो जाएँगें और हम गर्व से कह पाएंगे, "हाँ हम हिन्दू हैं!"



3 comments:

  1. शोषक वर्ग और उसके सहयोगियों द्वारा धर्म की मूल भावना और उसके स्वरूप का अपहरण किया गया ! शोषक वर्ग की दूसरे के श्रम और सेवा पर निर्भरता के कारण धर्म और राजनीति को एक ऐसे रूप में ढाला गया जिससे प्रचुर मात्र में श्रमशील मानव-संसाधन उपलब्ध रहे ! श्रमशील मनुष्यों को अपने शोषण को पहचानने,उसका विरोध करने और यहाँ तक की स्वयं को एक स्वतन्त्र सचेतन प्राणी की पहचान रखने तक से वंचित करने में धर्म ने राजसत्ता का भरपूर सहयोग किया है ! धर्म का वर्तमान स्वरूप शोषण का नैतिकशास्त्र है और कुछ नहीं ,हालाँकि बीच-बीच में प्राचीन धर्म की मूल-भावना को शोधी-साधकों द्वारा पुनर्जीवित ,पुनर्प्रस्तुत करने के प्रयास भी होते रहे हैं ,लेकिन भय और प्रलोभन की जकड़ इतनी मजबूत होती है कि इससे बड़े-बड़े शिक्षित और आधुनिक लोग भी नहीं मुक्त हो पाते !

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  2. सटीक समीक्षा की है, साधुवाद

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  3. आज 28/फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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