अमेरिकी नारीवादी कवयित्री एड्रिएन सिसिल रिच (16 मई, 1929) अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता व प्रगतिशीलता के लिए विख्यात रही हैं। पिछले वर्ष 27 मार्च 2012 को उनका देहांत हो गया।
एड्रीएन रिच की एक कविता
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चूंकि हम युवा नहीं हैं, एक-दूसरे से न मिल पाने के वर्षों खोये समय को
पूरना होगा हफ्तों में।
इस पर भी सिर्फ
समय का यह अजीब मोड़
बतलाता है मुझे हम युवा नहीं हैं।
क्या जब मैं बीस की थी सुबह की सड़कों पर कभी घूमती थी,
मेरा शरीर परम आनंद से सराबोर?
क्या कभी मैंने ऊपर से झांक कर देखा था किसी खिड़की से शहर को
भविष्य के लिए सुनते हुए
जैसे कि मैं सुन रही हूं यहां तंत्रियां तुम्हारी घंटी पर लगीं?
और तुम मेरी ओर बढ़ती हो उसी गति से।
तुम्हारी आंखें नित्य हैं,
शुरुआती ग्रीष्म की नीली आंखोंवाली घास की हरी कौंध
हरा-नीला जंगली क्रेस1 वसंत से धुला।
बीसवें वर्ष में , हां : हमने सोचा था हम सदा रहेंगे।
पैंतालिसवें वर्ष में, मैं जानना चाहती हूं, यहां तक कि हमारी सीमाएं।
मैं तुम्हें छूती हूं जानते हुए कि हम कल नहीं जन्मेंगे
और किसी तरह, हम में एक-दूसरे की जिंदगी में काम आएंगे
और कहीं, हम में से हर एक को मदद करनी होगी
दूसरे की मृत्यु के वरण में।
साभार : समयान्तर
एड्रीएन रिच की एक कविता
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चूंकि हम युवा नहीं हैं, एक-दूसरे से न मिल पाने के वर्षों खोये समय को
पूरना होगा हफ्तों में।
इस पर भी सिर्फ
समय का यह अजीब मोड़
बतलाता है मुझे हम युवा नहीं हैं।
क्या जब मैं बीस की थी सुबह की सड़कों पर कभी घूमती थी,
मेरा शरीर परम आनंद से सराबोर?
क्या कभी मैंने ऊपर से झांक कर देखा था किसी खिड़की से शहर को
भविष्य के लिए सुनते हुए
जैसे कि मैं सुन रही हूं यहां तंत्रियां तुम्हारी घंटी पर लगीं?
और तुम मेरी ओर बढ़ती हो उसी गति से।
तुम्हारी आंखें नित्य हैं,
शुरुआती ग्रीष्म की नीली आंखोंवाली घास की हरी कौंध
हरा-नीला जंगली क्रेस1 वसंत से धुला।
बीसवें वर्ष में , हां : हमने सोचा था हम सदा रहेंगे।
पैंतालिसवें वर्ष में, मैं जानना चाहती हूं, यहां तक कि हमारी सीमाएं।
मैं तुम्हें छूती हूं जानते हुए कि हम कल नहीं जन्मेंगे
और किसी तरह, हम में एक-दूसरे की जिंदगी में काम आएंगे
और कहीं, हम में से हर एक को मदद करनी होगी
दूसरे की मृत्यु के वरण में।
साभार : समयान्तर