Thursday, January 23, 2014

बन के कली, बन के सबा, बाग-ए-वफ़ा में.......






 
 जब हम न होंगे, तब हमारी खाक पे तुम रुकोगे चलते चलते
अश्कों से भीगी चांदनी में एक सदा सी सुनोगे चलते चलते
वहीं पे कहीं हम तुम से मिलेंगे, बन के कली, बन के सबा, बाग-ए-वफ़ा में.......

सुचित्रा सेन द्वारा अभिनीत हिन्दी की फिल्में बेशक कम ही रही पर जितनी भी रही बेहतरीन रहीं! पहले-पहल मैंने उन्हे 'ममता' में देखा था, फिर एक एक कर आँधी, मुसाफिर, देवदास और बंबई का बाबू ने उन्हे मेरी प्रिय अभिनेत्री बना दिया! याद आती हैं 'बंबई का बाबू' की वह शरारती सुचित्रा जो देवानन्द को अपनी सहेलियों के साथ छेड़ते हुये गाती हैं

"देखने में भोला है दिल का सलोना,
बम्बई से आया है बाबू चिन्नन्ना"

या फिर मुंह बनाते हुये गाती हैं

'प म ग म रे ग प म ग म, आआ आ ...
सा नी ध प म ग रे सा नी नी नी ...
दीवाना, मस्ताना, हुआ दिल,
जाने कहाँ होके बहार आई...........'

फिर उन्ही सुचित्रा की बोलती हुई उदास आँखें बिना बोले ही सब कह देती हैं और बैक्ग्राउण्ड में बज रहा होता है,

"चल री सजनी अब क्या सोचे,
कजरा न बह जाए रोते रोते........"

किसी एक फिल्म को मैं प्रिय या दूसरी को कम प्रिय कह पाने की स्थिति में खुद को नहीं पाती हूँ! बंबई का बाबू की चंचल लड़की, देवदास की पारो, ममता की दोहरी भूमिका, मुसाफिर या फिर आँधी की सार्वकालिक महान भूमिका, यकीनन सुचित्रा हिन्दी और बांग्ला सिनेमा के उन अदाकारों में से रहीं जो अभिनय को उन बुलंदियों पर ले जाते हैं जहां इंसान देवता बन जाता है! एक बार पढ़ा था, किसी ने सुचित्रा से पूछा कि अब वे अभिनय क्यों नहीं करती तो उन्होने जवाब दिया अब मेरे साथ काम करने वाले अब ऐसे लोग भी कहाँ रहे! सुचित्रा ने जहां अभिनय की ऊंचाइयों को छुआ वहीं ग्रेटा गार्बो की तरह सेंतीस बरस के अपने एकांतवास के कारण भी वे बेजोड़ रहेंगी! सुचित्रा भौतिक रूप से रहे या न रहें, हम प्रशंसकों के दिल में वे सदा जीवंत बनी रहेगी..........विनम्र श्रद्धांजलि

Sunday, January 5, 2014

आवाज़ का पुल



      
कहीं दूर देश में एक सुनहरे बालों, गहरी आँखों और सुंदर गुलाबी रंगत लिए एक लड़की हर शाम एक जंगल में प्रेम की पुकार भरे गीत गाया करती थी! उसकी गहरी आँखों में एक अजीब सी उदासी थी और वह नदी किनारे बैठकर दूर क्षितिज को निहारा करती थी! उसके सतरंगी फ्रॉक सा रंग जब दूर क्षितिज की तलहटी में किसी अनगढ़ चितेरे की कूँची से निकले इंद्रधनुष सा फैलने लगता तो लड़की के उदास स्वर आसमान में एक जाल सा बुनने लगते! कहते हैं उसकी स्वरलहरियाँ धीरे-धीरे नदी पर छाए एक पुल में बदल जाती थीं! एक दिन उसी पुल के रास्ते एक राजकुमार आवाज़ के जादू में घिरा खिंचा चला आया! लड़की की तलाश पूरी हुई! इसके बाद शाम कभी इतनी उदास नहीं हुई! हर रोज़ उसी पुल के रास्ते राजकुमार लड़की की ओर खिंचा आता और सुबह उसी आवाज़ के पुल से लौट जाता! एक दिन नदी में गहरा तूफान था, आज लड़की का मन गाने का बिलकुल नहीं था! उस पार खड़े राजकुमार से वह लौट जाने को कहना चाहती थी किन्तु प्रेम बेड़ियाँ बना दोनों को एक दूसरे से जुड़ा रहने से रोक रहा था! लड़की ने गाना शुरू किया, पुल बना और राजकुमार मुस्कुराते हुए आहिस्ता आहिस्ता अपनी प्रेयसी की ओर बढ़ रहा था! तभी एक साँप ने लड़की के पैर को डस लिया, लड़की फिर भी गाती रही, उसकी उदास आँखें धीमे धीमे बंद हो रही थी, आवाज़ मद्धम हो चली थी, पुल डगमगाने लगा था, पर वो गाती रही! पर इससे पहले कि उसका प्यार उसकी बाहों में होता, वह गहरी नींद के आगोश में खो गयी और पुल नदी के तूफान की गहराइयों में समा गया! कहते हैं आज भी उस जंगल में हर शाम उदास गीतों से नदी पर एक अदृश्य पुल बनता है और नदी के भंवर में डूब जाता है, उसी के साथ ही गीत भी बंद हो जाता है! शाम अब ज्यादा, बहुत ज्यादा उदास है!