Thursday, July 25, 2013

ब्रेख्त की एक कविता

मेरा छोटा लड़का मुझसे पूछता हैः क्या मैं गणित सीखूँ?
क्या फायदा है, मैं कहने को होता हूँ
कि रोटी के दो कौर एक से अधिक होते हैं
यह तुम जान ही लोगे।

मेरा छोटा लड़का मुझसे पूछता हैः क्या मैं फ्रांसिसी सीखूँ?
क्या फायदा है, मैं कहने को होता हूँ
यह देश नेस्तनाबूद होने को है
और यदि तुम अपने पेट को हाथों से मसलते हुए
कराह भरो, बिना तकलीफ़ के झट समझ लोगे।

मेरा छोटा लड़का मुझसे पूछता हैः क्या मैं इतिहास पढूँ?
क्या फायदा है, मैं कहने को होता हूँ
अपने सिर को जमीन पर धँसाए रखना सीखो
तब शायद तुम जिन्दा रह सको।

-----ब्रेख्त
साभार : तत्सम

9 comments:

  1. विचारयोग्य कविता।
    आपको नए ठिकाने के लिए बधाई। उम्मीद करता हूँ यंहा आना आपका सुखद रहे। कभी वक़्त मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी घूम कर आइये। मेरा पता है manavsir.blogspot.in

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    1. आपका स्वागत है मानव जी......जरूर

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  2. ये अच्छा हुआ ...शुभकानाएं बहन नए ब्लॉग के लिए

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  3. बहुत अच्छी कविता का बहुत अच्छा अनुवाद !


    सादर

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  4. स्वागत है आपका ब्लॉगिंग की दुनिया में अंजू जी …नये ठिकाने का नाम भी बहुत सुंदर है. सुंदर प्रस्तुति . यशवंत जी ने मेरे ब्लॉग को भी promote किया है.उनकी बहुत आभारी हूँ keep writing…।

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  5. बहुत अच्छा किया अंजू....हैरान हूँ कि इतनी देर क्यूँ लगाईं blog बनाने में.
    ढेर सारी शुभकामनाएं
    अनु

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    1. स्वागत है अनु....मैं पिछले 2 साल से ब्लॉगर हूँ.....आप तो मेरे ब्लॉग पर नियमित टिप्पणी करती रही हैं....."कुछ दिन ने कहा''.....बस पिछले कुछ समय से कुछ कारणों से उसे बंद कर दिया है.....

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    2. हाँ हमें लगा भी था....फिर ये फेसबुक की वजह से ज़रा confuse हो गए :-)
      अब निरंतरता बनाये रखिये.
      अनु

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