वंदना ग्रोवर हिंदी और पंजाबी में कवितायें लिखती हैं! उन्हें पढ़ने के लिए कविताओं के प्रचलित फार्मूले से इतर एक सजग पाठक बनना होगा, इतना सजग कि किसी एक पल जिस्म को झनझना देने वाली संवेदना के करेंट को साधकर आगे बढ़ने का हौंसला हो! यहाँ रूककर सांस लेता स्त्री-मन है, जिसकी नज़र आगे मंज़िल पर हैं! वंदना की कविताओं में आहिस्ते से अपनी बात रखने का सलीका भी है और हुनर भी! ये कविताएँ पांच दरियाओं की रवानी हैं, शीतलता है और वहीँ इनमें पानी के ठीक नीचे की बेचैनी भी हैं जो गिरेबान पकड़कर आँखों में आँखे डालकर कह उठती हैं, "वे/सुण/एस तरां चल नी होणी".... आइए पढ़ते हैं वंदना ग्रोवर की हिंदी और पंजाबी कवितायें....
हिंदी कवितायें
1 .
एक दिन ऐसा भी
निर्विकार
निर्लिप्त .निसंग
ढल गया
रात थी जश्न की
आज़ादी की
कोलाहल की
ढल गई
आएगी सुबह
आएगी रात
ढल जायेगी
उम्र भी
ढलते ढलते
पहुंचेगी
ज़िन्दगी की शाम
अपने अंतिम पड़ाव पर
तन्हा ...
2 .
तुम तक पहुंचू मैं
या पहुंचू खुद तक मैं
ये एक कदम आगे
और दो कदम
पीछे का सिलसिला
गोया मुसलसल चलता
ऐसा तमाशा हुआ
कि ज़िन्दगी रहे न रहे
तमाशा जारी रहे
3.
घूमती हूँ तुम्हारे इर्द-गिर्द
तुम सूर्य नहीं
मैं पृथ्वी नहीं
खींचती हैं चुम्बकीय शक्तियां
अदृश्य हो जाते हैं रात-दिन
खो जाती हैं ध्वनियाँ
आँखें मूंदे
चली चली जाती हूँ दूर तक
तुम्हारे पीछे
तय करती हूँ
हज़ारों मील के फासले
रोज़ मरती हूँ
जन्म लेती हूँ रोज़
हर जनम में
चलती हूँ तुम्हारे पीछे
नहीं
कोई मुक्ति नहीं
इस बंधन से
पिछले हर जनम के कर्मों ने
बाँध दिया है
अगले कई जन्मों के लिए
तुम्हारे साथ
4.
उफ़ !
कह भी दो न चुप रहो
कि सहना अब मुहाल है
मैं रहूँ कि न रहूँ
कुछ कहूं कि न कहूं
तुम हो तो हर सवाल है
जो रुक गई तो रुक गई
गर चल पड़ी तो चल पड़ी
ये सांस भी कमाल है
आह कहूँ कि वाह कहूँ
आबाद कि तबाह कहूँ
ये जीस्त भी बवाल है
5.
बादल के नीचे घर था
सूरज का वहीं बसर था
चमकती आँखों में
धूप थी या पानी
या कोई कहानी
6.
सफ़ेद चादरों
और नीले कम्बलों के बीच
विजातीय तत्वों को परे धकेलती
चार छिद्रों के आस पास
बूँद बूँद टपकती ऊर्जा
फिर
लौट आना जीवन के प्रवाह में
कुछ दर्द लाजिमी हैं
पर लाइलाज नहीं
कुछ ताक़ीद हैं
मसलन
लेना है आहार में
आज थोड़ा प्यार तरल
कल एक स्पर्श नरम
और फिर ठोस अवस्था में
इतनी तवज़्ज़ो ,उतना दुलार
नींद पूरी
कुछ ज़िन्दगी
हर आहार से पहले और बाद में
चुटकी भर तुम
पंजाबी कवितायें
1.
सुण
बड़ा रिस्की ज्या हो गिया ऐ
सारा मामला
हाल माड़ा ऐ मिरा
जित्थे वेखां
तूं दिसदा एं
गड्डी दे ड्रेवर विच
होटल दे बैरे विच
दफ्तर दे चपरासी विच
वे
सुण
एस तरां चल नी होणी
जे आणा है ते आ फेर
कदे लफ्जां दा सौदागर बण के
उडीक रईं आं
कदे पढ़ेंगा ते कहेंगा फखर नाल
जिस्म औरत दा
नीयत इंसान दी ते ज़हन कुदरत दा
लेके जम्मी सी
हक दे नां ते ज़ुल्म नई कीत्ता
फ़र्ज़ दे नां ते ज़ुल्म सिहा नई
वे
सुण
ना कवीं कदे जिस्म मैनू
ना कवीं कदे हुस्न
ना रुबाई ना ग़ज़ल कवीं
बण जावांगी कुज वी तेरी खातिर
वे
सुण
तेरे वजूद नू अपना मनया
इश्क़ लई इश्क़ करना सिखया
घुटदे साहां नाल
क़ुबूल करना सिखया
ते पत्थर हिक्क रखना सिखया
वे
सुण
तू मैंनू मगरूर कैन्ना एं
मैं तैंनू इश्क़ कैंनी आं
बड़ा रिस्की ज्या हो गिया ऐ
सारा मामला
हाल माड़ा ऐ मिरा
जित्थे वेखां
तूं दिसदा एं
गड्डी दे ड्रेवर विच
होटल दे बैरे विच
दफ्तर दे चपरासी विच
वे
सुण
एस तरां चल नी होणी
जे आणा है ते आ फेर
कदे लफ्जां दा सौदागर बण के
उडीक रईं आं
कदे पढ़ेंगा ते कहेंगा फखर नाल
जिस्म औरत दा
नीयत इंसान दी ते ज़हन कुदरत दा
लेके जम्मी सी
हक दे नां ते ज़ुल्म नई कीत्ता
फ़र्ज़ दे नां ते ज़ुल्म सिहा नई
वे
सुण
ना कवीं कदे जिस्म मैनू
ना कवीं कदे हुस्न
ना रुबाई ना ग़ज़ल कवीं
बण जावांगी कुज वी तेरी खातिर
वे
सुण
तेरे वजूद नू अपना मनया
इश्क़ लई इश्क़ करना सिखया
घुटदे साहां नाल
क़ुबूल करना सिखया
ते पत्थर हिक्क रखना सिखया
वे
सुण
तू मैंनू मगरूर कैन्ना एं
मैं तैंनू इश्क़ कैंनी आं
2.
इक दिन ओ सी
जद तूं ही तूं सी
इक दिन ए है
जद तूं ही तूं है
ना तेरे आन दा पता
ना तेरे जान दी खबर
की ते मैं सोग मनावा
की मैं खिड़ खिड़ हस्सां
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परिचय
नाम : वंदना ग्रोवर
शिक्षा : एम ए., बी एड, पी एच डी
पैदाइश : हाथरस
रिहाइश : गाज़ियाबाद
कविता संग्रह 'मेरे पास पंख नहीं हैं ' बोधि प्रकाशन से 2013 में प्रकाशित
सम्प्रति : लोक सभा सचिवालय में बतौर क्लास -वन अधिकारी कार्यरत
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