Wednesday, July 30, 2014

मेरी पसंद के कुछ सावन गीत




सभी मित्रों को तीज की हार्दिक बधाई। तीज, यानि बचपन की यादें, हम राजस्थानियों की तीज यानि मेहंदी, चूड़ी, पाजेब, लहरिया, खीर-पूरी-घेवर और सबसे बढ़कर झूला....जी हाँ झूले के बिना कैसी तीज। ये उन दिनों की बात है जब दिल्ली में भी घर फ्लैट नहीं सचमुच घर हुआ करते थे। बड़े से आँगन वाले खुले-खुले घर। घर-घर झूला, घर-घर तीज। मेरे घर में भी झूला डलता था, मेरी करीबी दोस्त के यहाँ भी। सामने वाली जगत-चाची के यहाँ भी। पर सबसे ज्यादा जिसकी याद आती है वह था करीब के एक घर में डाला गया बड़ा झूला। उसे बहुत बड़े से मकान में एक बड़ा सा हिस्सा खुला था, जिसका बड़ा-सा विशालकाय (उस उम्र में हर चीज़ इतनी विशालकाय क्यों लगती थी?) गेट था, जिसे हम बड़ा गेट कहा करते थे। बस उसी गेट पर बड़ा-सा झूला डाला जाता था जहां सामूहिक रूप से हम सब बच्चे पूरा सावन हर दोपहर एकत्र होकर झूला करते थे। और फिर सालों बाद मेरे घर और मेरे सामने के घर के बीच छज्जों के बीच बड़े से लट्ठे डालकर मोटे-मोटे रस्सों से एक बड़ा-सा झूला डाला जाने लगा। फिर गली नंबर दो में सावन इतने उल्लास से आता कि महानगरीय संकोच और व्यस्तताएं मानों छुट्टी पर चली जाती। हर रात औरतें अपना काम 9 बजे तक निपटा कर सीरियलों की कैद तोड़कर गली में आ जमती। एक दरी बिछती, झूला नीचे उतारा जाता और दो-दो और कभी-कभी तीन-तीन एक साथ उस झूले पर झूलती। जिसे जो याद आता गाया जाता, तीज के गीत, सावन के गीत, और तो और हंसी ठिठोली से भरे फिल्मी गीत भी। मैं ऑफिस से आकर सोने से पहले अक्सर अपनी छत से उन्हे देखकर खुश हुआ करती और अगर मेरी दोस्त वहाँ आ जाती तो हम भी इस मस्ती की टोली का हिस्सा बन जाते। खैर अब न वह झूले रहे और न वो मस्ती। घर बनवाते वक्त ओपन किचन के सामने और चौथी मंज़िल की छत पर लेंटर में कड़े डलवाये थे कि सावन कहीं मेरे घर आना न भूल जाए।  

प्रस्तुत हैं आज तीज पर मेरी पसंद के कुछ सावन गीत .....







सावन आया

अम्मा मेरे बाबा को भेजो री - कि सावन आया
बेटी तेरा बाबा तो बूढ़ा री - कि सावन आया
अम्मा मेरे भाई को भेजो री - कि सावन आया
बेटी तेरा भाई तो बाला री - कि सावन आया
अम्मा मेरे मामू को भेजो री - कि सावन आया
बेटी तेरा मामू तो बांका री - कि सावन आया

 -- अमीर खुसरो



 

काहे को ब्याहे बिदेस

काहे को ब्याहे बिदेस,
अरे
, लखिया बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस
भैया को दियो बाबुल महले दो-महले
हमको दियो परदेस अरे, लखिया बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ
जित हाँके हँक जैहें अरे, लखिया बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ
घर-घर माँगे हैं जैहें अरे, लखिया बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

कोठे तले से पलकिया जो निकली
बीरन ने खाए पछाड़ अरे, लखिया बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो हैं बाबुल तोरे पिंजरे की चिड़ियाँ
भोर भये उड़ जैहें अरे, लखिया बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

तारों भरी मैनें गुड़िया जो छोड़ी  
छूटा सहेली का साथ अरे, लखिया बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

डोली का पर्दा उठा के जो देखा
आया पिया का देस अरे, लखिया बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस

अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस अरे, लखिया बाबुल मोरे
-- अमीर खुसरो 


बन बोलन लागे मोर

आ घिर आई दई मारी घटा कारी। बन बोलन लागे मोर
दैया री बन बोलन लागे मोर।
रिम-झिम रिम-झिम बरसन लागी छाई री चहुँ ओर।
आज बन बोलन लागे मोर।
कोयल बोले डार-डार पर पपीहा मचाए शोर।
आज बन बोलन मोर.........
ऐसे समय साजन परदेस गए बिरहन छोर।
आज बन बोलन मोर......... 
-- अमीर खुसरो


सावन का महिना पवन करे सोर (मिलन)

सावन का महीना, पवन करे सोर
पवन करे शोर
पवन करे सोर
पवन करे शोर
अरे बाबा शोर नहीं सोर, सोर, सोर
पवन करे सोर

हाँ, जियरा रे झूमे ऐसे, जैसे बन मा नाचे मोर
सावन का महीना ...

मौजवा करे क्या जाने, हमको इशारा
जाना कहाँ है पूछे, नदिया की धारा
मरज़ी है तुम्हारी, ले जाओ जिस ओर
जियरा रे झूमे ऐसे ...

रामा गजब ढाए, ये पुरवइया
नइया सम्भालो कित, खोए हो खिवइया
पुरवइया के आगे, चले ना कोई ज़ोर
जियरा रे झूमे ऐसे ...

जिनके बलम बैरी, गए हैं बिदेसवा
लाई है जैसे उनके, प्यार का संदेसवा
काली अंधियारी, घटाएं घनघोर
जियरा रे झूमे ऐसे ... 
--- आनंद बक्शी 


अब के बरस भेज भैया को बाबुल (बंदिनी)

अब के बरस भेज भैया को बाबुल,
सावन में लीजो बुलाय रे,
लौटेंगी जब मेरे, बचपन की सखिया,
दीजो संदेसा भिजाय रे !!

अंबुवा तले फिर से, झूले पड़ेंगे,
रिमझिम पड़ेंगी फुहारें,
लौटेंगी फिर तेरे, आँगन में बाबुल
सावन की ठंडी बहारे
छलके नयन मोरा, कसके रे जियरा
बचपन की जब, याद आये रे !!

बैरन जवानी  ने छीने खिलौने,
और मेरी गुड़िया चुराई,
बाबुल थी, मैं तेरे नाजों की पाली,
फिर क्यों,  हुई मैं पराई,
बीते रे  जुग  कोई  चिठिया ना पाती,
ना  कोई नैहर से आये रे !!

अब के बरस भेज भैया को बाबुल,
सावन में लीजो बुलाय रे !!

--- शैलेन्द्र


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