किसी शाम सोच ने करवट ली
जब मन दार्शनिक हो गुनगुनाया तो गाया
'इक दिन बिक जाएगा माटी के बोल
जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल'
जीने की हर वजह से ऊपर
यदि कोई वजह ढूंढने निकले
तो कानों ने बारहा सुना,
'किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
किसी का दर्द ले सके तो ले उधार'
बचपन को बेचैन हो
जब जब पुकार लगाई तो साथी बना
'आया है मुझे फिर याद वो जालिम
गुज़रा ज़माना बचपन का'
वो स्वर शामिल रहा
बचपन से जवानी के सफ़र की
हर पगडंडी से गुजरते हुए साये की तरह
तब भी जब लफ़्ज़ों को एक शक्ल पाने की
कसमसाहट खींचती रही दामन हर लम्हा
हमारे प्रेम ने मुस्कुराहटों की सौगातें पायीं
और रुमानियत ने हौले से
गर्म आगोश में लिए हुए सुनाया
'तू अबसे पहले सितारों में बस रही थी कहीं
तुझे जमीं पे बुलाया गया है मेरे लिए'
झिझक की चिलमन के उस पार से झांकती
दो शर्माती आँखें बस यही तो कह सकती थीं
पहले बोसे पर
'तू है तो दुनिया कितनी हंसी है
जो तू नहीं तो कुछ भी नहीं है'
महबूब की बिंदास चुहल उमड़ी तो शरारतों ने पुकारा
'ओ मेहबूबा, तेरे दिल के पास ही है मेरी मंज़िले-मकसूद
वो कौन सी महफ़िल है जहां तू नही मौजूद'
इश्क़ ने जीभर तारीफों के गहनों से सजाया
और बेतरहा लिपटकर धीमे से कहा
'हाँ, तुम बिलकुल वैसी हो, जैसा मैंने सोचा था'
शिकायतों ने अदाज़ सीखा तो आवाज़ दी,
'कहाँ जाते हो रुक जाओ, किसी का दम निकलता है
ये मंजर देखकर जाना'
तकिया भिगोती, पलक पर मोती तौलती
हर उदास रात में गूंजता रहा
'दोस्त दोस्त न रहा, प्यार प्यार न रहा'
उदासियों के पैरहन को
धूसर रंग भी उसी आवाज़ ने सौंपे
जो लरजकर पिघली और समा गई हर शिकवे में
'बहारों ने मेरा चमन लूटकर
खिजां को ये इलज़ाम क्यों दे दिया'
उस जुकामिया आवाज़ की रेंज हमारे दिलों तक थी
और उसकी छाप हमारे संवेदनों पर
हमारी धड़कनों में शामिल रही वह धक धक की तरह
और हमारे दर्द के हर बार पिघलकर बह जाने में
राजदार बनी
लाज़िम है जिसे सुनकर दर्द को दर्द उठे
और ग़म बेचारा भी ग़मगीन हो जाए
उदासियाँ उदास हो सिसकियों में डूबने लगे
जिसके आलाप पर दुःख के पारावार टूटने लगें
जब कसक तरल हो किसी के स्वर में बहने लगे
तो हम जानते हैं उसे किस नाम से पुकारेंगे....