Saturday, May 17, 2014

चालीस साला औरतें

इन अलसाई आँखों ने
रात भर जाग कर खरीदे हैं
कुछ बंजारा सपने
सालों से पोस्टपोन की गयी 
उम्मीदें उफान पर हैं
कि पूरे होने का यही वक़्त
तय हुआ होगा शायद

अभी नन्ही उँगलियों से जरा ढीली ही हुई है
इन हाथों की पकड़
कि थिरक रहे हैं वे कीबोर्ड पर
उड़ाने लगे हैं उमंगों की पतंगे
लिखने लगे हैं बगावतों की नित नयी दास्तान,
संभालो उन्हे कि घी-तेल लगा आंचल
अब बनने को ही है परचम

कंधों को छूने लगी नौनिहालों की लंबाई
और साथ बढ़ने लगा है सुसुप्त उम्मीदों का भी कद
और जिनके जूतों में समाने लगे है नन्हें नन्हें पाँव
वे पाँव नापने को तैयार हैं
यथार्थ के धरातल का नया सफर

बेफिक्र हैं कलमों में घुलती चाँदी से 
चश्मे के बदलते नंबर से
हार्मोन्स के असंतुलन से 
अवसाद से अक्सर बदलते मूड से
मीनोपाज़ की आहट के साइड एफ़ेक्ट्स से   
किसे परवाह है,
ये मस्ती, ये बेपरवाही,
गवाह है कि बदलने लगी है खवाबों की लिपि
वे उठा चुकी हैं दबी हंसी से पहरे  
वे मुक्त हैं अब प्रसूतिगृहों से,
मुक्त हैं जागकर कटी नेपी बदलती रातों से,
मुक्त हैं पति और बच्चों की व्यस्तताओं की चिंता से,

ये जो फैली हुई कमर का घेरा है  न
ये दरअसल अनुभवों के वलयों का स्थायी पता है
और ये आँखों के इर्द गिर्द लकीरों का जाल है
वह हिसाब है उन सालों का जो अनाज बन
समाते रहे गृहस्थी की चक्की में
ये चर्बी नहीं
ये सेलुलाइड नहीं
ये स्ट्रेच मार्क्स नहीं
ये दरअसल छुपी, दमित इच्छाओं की पोटलियाँ हैं
जिनकी पदचापें अब नयी दुनिया का द्वार ठकठकाने लगीं हैं 
ये अलमारी के भीतर के चोर-खाने में छुपे प्रेमपत्र हैं
जिसकी तहों में असफल प्रेम की आहें हैं 
ये किसी कोने में चुपके से चखी गई शराब की घूंटे है
जिसके कडवेपन से बंधी हैं कई अकेली रातें,   

ये उपवास के दिनों का वक़्त गिनता सलाद है
जिसकी निगाहें सिर्फ अब चाँद नहीं सितारों पर है,
ये अंगवस्त्रों की उधड़ी सीवनें हैं
जिनके पास कई खामोश किस्से हैं 
ये भगोने में अंत में बची तरकारी है
जिसने मैगी के साथ रतजगा काटा है 

अपनी पूर्ववर्तियों से ठीक अलग
वे नहीं ढूंढती हैं देवालयों में
देह की अनसुनी पुकार का समाधान
अपनी कामनाओं के ज्वार पर अब वे हंस देती हैं ठठाकर,
भूल जाती हैं जिंदगी की आपाधापी
कर देती शेयर एक रोमांटिक सा गाना,
मशगूल हो जाती हैं लिखने में एक प्रेम कविता,
पढ़ पाओ तो पढ़ो उन्हे
कि वे औरतें इतनी बार दोहराई गई कहानियाँ हैं
कि उनके चेहरों पर लिखा है उनका सारांश भी,
उनके प्रोफ़ाइल पिक सा रंगीन न भी हो उनका जीवन
तो भी वे भरने को प्रतिबद्ध हैं अपने आभासी जीवन में
इंद्रधनुष के सातों रंग,
जी हाँ,  वे फ़ेसबुक पर मौजूद चालीस साला औरतें हैं................



(बिंदिया अप्रैल 2014 अंक में प्रकाशित)

2 comments:

  1. बहुत प्रभावी ... मुखर है आज हर कोई ...
    सीमाओं से दायरे से बाहर आने को व्याकुल ...

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