Thursday, February 12, 2015

निरुपमा सिनहा की कवितायें








निरुपमा सिनहा की प्रेम कवितायें हम फेसबुक पर पढ़ते रहे हैं!  चाँद उनका प्रिय विषय रहा है!  चाँद पर लिखी उनकी कई कविताओं और साझा की गईं पंक्तियों से बनी 'सुन्दर प्रेम कविताओं की कवयित्री' की छवि से ठीक इतर,  पिछले कई महीनों से नवसम में गोष्ठियों में सुनीं उनकी कविताओं ने एक संकोची किन्तु विचार प्रधान लेखिका से मिलने का अवसर दिया!  उन्हीं के शब्दों में, " बचपन में एक निर्जीव पड़े पौधे को मिट्टी में रोपते वक्त मन में यह विश्वास जगा था कि इसमें जीवन ज़रूर पनपेगा!  इसी आशा ने मेरे लेखन को शब्द दिए और मेरी पहली लघु कहानी लखनऊ आकाशवाणी से "बालसभा " कार्यक्रम में प्रसारित हुई!  आकाशवाणी गोरखपुर से भी कहानी और हास्य-व्यंग्य का प्रसारण हुआ!"  तो आज उनकी कुछ कवितायें स्वयंसिद्धा के पाठकों के लिए.……










(1)


चींटियाँ

मेरे आसपास
टहलती हैं
चींटियाँ
भूरी
लाल
और
काली ..
भूरी ...
कितनी मिलती है
विपत्तियों से
हमें डरा धमका
दबे पाँव
निकल जाती हैं
अहसास दिला
कि
निश्चिन्त न होना ..
लाल ...
चिपट काया से
निकाल लेती है
अंदर की चीखें
जिसे हमने
वर्जनाओं में लपेट रखा था
सहनशक्ति के नाम पर ...
.काली...
को
हमेशा जल्दी होती है
गन्तव्य तक
पहुँचने की
निगरानी कर
हमारी भावनावों की
चल देती चंचल सी
उन कन्दरावों में
जहाँ हमने भी
सहेजे होते हैं
सफेद ..उजले ..भविष्य
उसके अण्डों की तरह !!


(2)
तुलना


निर्बाध बहती
अपने लक्ष्य को
साधती
किसी बंधन को
नहीं मानती
कभी धीमी
कभी तेज़
छलक कर
छलका कर
अपनी चंचलता से
भिगो जाती
बिना
यह सोचे कि
बुरा लगेगा
या भला
स्वीकारती
जीवन की खुशियों को
आमन्त्रण
पा सागर का
दौड़ जाती
अबाध !!
.
..............मैं नदी !!!
खुश नहीं हूँ
यह जानकर
कि
मेरी तुलना की जाती है
स्त्री से !!







(3)
अधखुले पन्ने का सच !!


इधर से उधर
छिपता हुआ बच्चा
घर की चाहरदीवारों के बीच
सहमा सा
पिता की शोर करती
आवाज़
से
कान को ढापे हुए

इस इंतजार में
कि कब निकले
पिता घर से
और
घर उसका हो जाए

सबसे नागवार गुजरता था
उनका माँ पर चिल्लाना
दिनभर मकान को
घर बनाते
थकती थी
माँ की हिम्मत
पर नहीं हारते थे
" पिता "
अपनी आदतों से .
मन -मन तसल्ली करता था
वो मासूम सा बचपन
बड़ा होकर
नहीं चलेगा इन पदचापों पर

समय ने
छोटे से बड़ा
बड़ा से
जवान कर दिया
उसके दालान और आँगन में
दीखता हैं बचपन
पर नहीं दिखता कोई
मासूम
दौड़ कर उससे लिपटता हुआ
और
.... " पापा " प्यार से कहते हुए
न जाने
कब और कैसे
वो भी चल चुका होता है
पिता की राह पर
उसकी ऊँची आवाज़े जा टकराती है
बंद दिशाओं में
पत्नी की आँचल में
सुबकते बच्चे
आज भी करते हैं इंतजार
कि
कब हो पापा बाहर
और हम
अपने होने का उत्सव मनाये !!


(4)
मौसम


मंडराती हैं
आसपास
तमाम मधुमक्खियाँ
पैरों में
हाथों में
चेहरों पर
यहाँ तक की
दिल पर भी
ऊभरे थे
अनेक
डंक के निशाँ
उसने सीखा नहीं
स्वभाव का गेंद बन जाना
लौटा नहीं पाती थी
कोई भी दंश
.एकत्र करती जाती थी
सब कुछ
समय के अंतराल पर
आ जाते थे
व्यापारी
बटोर ले जाने
"शहद "
..
वसंत आ रहा है घबरा रहा है
उसका मन
मौसम फूलों का
बढ़ा न दे उसका दर्द






(5) 
स्मृतियाँ


मिस्र की पिरामिडों में
रखी लाशों की तरह
पूरे ज़िस्म में
सुरक्षित हैं
लेप लगाये हुए
स्मृतियाँ

संरक्षण की खोज ही
शायद
हुई होगी
इन्हीं स्मृतियों के
खो जाने के भय से

पिरामिडों के ठीक पीछे
दफ़न है
इन्हें पुनः जीवित कर देने का रहस्य

लेकिन
कोई उस कला को
सीखना नहीं चाहता
अच्छी लगती है
सबको शांत .....नीद में लेटी
मूक स्मृतियाँ
आवश्यकतानुसार
धीरे - धीरे
खुद की ओर से
खुले हुए दरवाजों से
प्रवेश करना
जहाँ से दूसरे का
दखल बंद हो !!


(6)
अधपका


मन की आँच
तन की हांडी
पकते रहे
विचारों के चावल
चैतन्यता बीच बीच में
उचकाती रही कंधे शब्दों पर
...नमक
जैसे वाक्य विन्यास पर
जाँचता रहा अर्थप्रवाह ....

किसी चीज़ का
ठीक से पक जाना ही
स्वाद की विश्वसनीयता है
यही सोच
खदबदाती रही
वाक्यों का संयोजन
निश्चिंतता के व्याकरण पर
ज्यूँ ही उतारा अपना अंतर्मन ..
..नीचे की परत पर थी
कालिमा का वर्चस्व
भूल गई थी
स्त्रियाँ !!
रचती नही कविता
..उन्हें रचना होता है परिवार .
................. जहाँ कभी कुछ अधपका नही रहता
सिवाय मन के !!

***********


परिचय

निरुपमा सिनहा
जन्म - 23अक्टूबर
स्थान - बस्ती (उ.प्र )
शिक्षा - एम .ए (हिंदी ) बी. एड
निवास स्थान - इन्द्रापुरम गाज़ियाबाद

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कवितायेँ प्रकाशित!
हिंदी युग्म से प्रकाशित पुस्तक बालार्क में कविताएँ और कलकता के "प्रभात चेतना " में प्रकाशित कविता .
लखनऊ आकाशवाणी द्वारा पत्र -लेखन में पुरस्कार!


(उपरोक्त चित्र गूगल से लिए गए हैं)


6 comments:

  1. सुन्दर कविताओं का संकलन।निरुपमा की कवितायें बड़ी सहजता एवम् सरलता से स्त्री मन का भूगोल रच देती है। शब्दों का चयन व प्रतीक और बिम्ब का बड़ा ही सुन्दर समायोजन है इनकी सभी कविताओं में।बधाई नीरू ........:)..एकसाथ इतनी सुन्दर कविताओं को पढ़वाने का शुक्रिया अंजू।

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    1. स्नेह सखी !
      कविता के इस सफ़र में शुरु से ही साथ रही हो आशा है यूँ ही चलती रहोगी !

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  2. wow bhabhi really lovely n touchy collection of thoughts.......great....

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  3. अलग - अलग विषयों पर लिखी आपकी रचनाएँ ह्रदय के बेहद करीब हैं , आज एक साथ यहाँ पर इस तरह पढ़कर बेहद ख़ुशी हो रही है . बहुत - बहुत बधाई आपको निरुपमा दी ...!!!

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    1. तुम्हारी प्रतिक्रिया मेरा उपहार है जो हृदय में स्थापित हो गया है .. यही स्नेह हमेशा बना रहे !!

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