लेटे हुए, सोचती रही
कल रात
कैसे खोजूं एक घर अपनी आत्मा के लिए
पानी जहाँ प्यासा न हो
और रोटी का निवाला पत्थर न हो
मेरे मन में आया एक ख्याल
और मैं नहीं समझती मैं गलत हूँ
कि कोई नहीं
हाँ कोई नहीं
जी सकता यहाँ अकेले
अकेले, नितांत अकेले
कोई नहीं, हाँ कोई नहीं
जी सकता यहाँ अकेले
कुछ करोड़पति हैं
उस पैसे के साथ जिसे वे इस्तेमाल नहीं कर सकते
जिनकी बीवियां भटकती हैं प्रेतात्माओं-सी
बच्चे उदासियाँ गुनगुनाते हैं
पाये हैं उन्होंने महंगे डॉक्टर
अपने पत्थर के दिल के इलाज़ के लिए
पर कोई नहीं,
नहीं, कोई नहीं
जी सकता यहाँ अकेले
अकेले, नितांत अकेले
कोई नहीं, हाँ कोई नहीं
जी सकता यहाँ अकेले
अब यदि सुनो ध्यान से
बताती हूँ तुम्हें जो है मुझे पता
बस चलने ही वाली है हवा
पीड़ा में है मानव प्रजाति
और मैं सुन सकती हूँ कराह
क्योंकि कोई नहीं
बस कोई नहीं
जी सकता यहाँ अकेले
अकेले, नितांत अकेले
कोई नहीं, हाँ कोई नहीं
जी सकता यहाँ अकेले
---माया एंजेलो
अनुवाद : अंजू शर्मा
भाव तो सर्वस्थानिक और सर्वकालिक होने के कारण बेहतर है ही,,, अनुवाद में यह भारतीय स्वाद अर्थात पुरे तरह से लक्ष्य भाषा में आ गया है। हमें लगा दर्शन शास्त्र का दृष्टि लिए भारतीय कविता है।
ReplyDeleteअब यदि सुनो ध्यान से
ReplyDeleteबताती हूँ तुम्हें जो है मुझे पता
एकत्र हो रहे हैं तूफानी बादल
बस चलने ही वाली है हवा
पीड़ा में है मानव प्रजाति
और मैं सुन सकती हूँ कराह
क्योंकि कोई नहीं
बस कोई नहीं
जी सकता यहाँ अकेले...
बहुत अच्छी कविता। सराहनीय प्रस्तुति।