Monday, April 20, 2015

जैसे जिनके धनुष - विजेंद्र जी की नज़र से





पिछले दिनों विश्व पुस्तक मेला, दिल्ली में बीकानेर निवासी कवि नवनीत पाण्डे का हिंदी कविता का तीसरा संग्रह 'जैसे जिनके धनुष' लोकार्पित हुआ!  यह संग्रह बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित हुआ है और वरिष्ठ कवि विजेंद्र जी ने इसकी भूमिका लिखी!  विजेंद्र जी ने भूमिका में कवि के रचनाकर्म के बहाने हिंदी कविता पर विस्तार से चर्चा की है जिसे मैं आप लोगों से साझा कर रही हूँ...



नवनीत से कवि रूप में मेरा परिचय फेस बुक पर हुआ । उनकी कविताओं और सारवान टिप्पणियों ने मेरा ध्यान आकृष्ट  किया । पता लगा वह बीकानेर के है । मेरी दिलचस्पी और बढ़ी । नवनीत ने बताया वह मेरी पुस्तक ,  ’सौंन्दर्यशास्त्र: भारतीय चित्त और कविता’ को पढ़ चुके हैं । इस दौरान उनका फरीदाबाद किसी काम से आना हुआ । मेरी पहली भेंट यही थी । उन्होंने अपना कविता संकलन दिया । मेरी एक लम्बी कविता की कुछ पंक्तियां रिकार्ड की । कविता को लेकर बात-चीत से पता लगा नवनीत कविता और कवि कर्म के बारे में काफी उत्सुक और गम्भीर है । मुझे आश्चर्य हुआ कि इतने गम्भीर और वयस्क  कवि की कविताएं समकालीन पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ने को क्यों नहीं  मिली ?

राजस्थान मेरा अपना प्रदेश है जहां मैं सृजन कर्म में लगभग आधी सदी गुज़ार चुका हूं। प्रदेश के सभी कवियों को जानता भी हूं । नवनीत जैसे गम्भीर कवि राजस्थान में विरल हैं । नवनीत सृजन में यकीन करते हैं । अपने को जबरदस्ती स्थापित करने की जोड़-तोड़ की हिकमत उन्हें नहीं आती । उनमें  समझौते करने की दैनीय क्षमता भी नहीं है । कृतिओर के लिए भी उन्होंने मेरे बड़े आग्रह पर अपनी कविता प्रेषित की थी । मुझे ऐसे कवि सदा आकर्षित करते हैं। ऐसे कवियों का भी मूल्यांकन जरूर हेाता है जो समर्पण से सिर्फ सृजन करते है । मूल्यांकन के लिए धैर्य रखते हैं । मेरा अपना अनुभव है कि भाग - दौड़ करके जो कवि अपने को स्थापित कर लेते हैं उनकी रोशनी बहुत क्षणिक होती है । जिनको अपने सम्यक् मूल्यांकन के लिए धैर्य रखना पड़ता है - उपेक्षा भी झेलनी पड़ती है - लेकिन उनका मूल्यांकन जब भी होता है स्थाई होता है ।

मैं नवनीत के दो कविता संकलन पढ़ चुका हूं । इस संकलन की पाण्डुलिपि पढ़ने का सुअवसर मुझे मिला । मुझे प्रसन्नता है । यहां नवनीत की कविता का विकास देखा जा सकता है । उनके सामाजिक सरोकार विविध और व्यापक हुए हैं । आजकी पूजीकेद्रित व्यववस्था से उपजी मानवीय विकृतियों को नवनीत ने उजागर किया है । यह व्यवस्था हमारे कोमल रिश्तों को समाप्त करती है । घर परिवार बिखरने लगता है । नवनीत की अनेक कविताएं घर पर हैं । संकेत है कि घर समाज की इकाई है । इसका नष्ट होना मनुष्य के सांस्कृतिक विघटन से जुड़ा है । महानगर मे आदमी निर्वासित होकरजैसे अकंल हो गया है । नवनीत कवि की सबसे बड़ी ताकत शब्द को ही मानते हैं । शब्द को लेकर भी कवितायें हैं । इस संकलन में नवनीत प्रकृति के करीब भी आये हैं । हवा , वर्षा , नदी , समुद्र , वृक्ष , पहाड़, चांद, मछलियां आदि वस्तुएं होकर भी कविता में प्रतीकार्थ देती है । इसे कविता में इकेहरापन नहीं आता । अर्थ गौरव व्यापक होता है । कविता में संकेतिकता से ध्वन्यार्थ की गहराई आती है । ये बात पहले संकलनों से यहां अधिक । एक पंक्ति से यह बात लक्ष्य की जा सकती है -

                         'हर  बीज  के  गर्भ में  एक पेड़ है'

एक स्थान पर कहा है , ‘पिंजरों में जिओ ’ यानि दास और परतन्त्र कर उसे विकास की सारी सम्भावनाओं से च्युत करना । नवनीत बाज़ार के प्रतिकूल असर का भी संकेत देते हैं । जिसे परोस रहा है बाज़ार /गजब के लुक पैक में /मैं फिर उड़ूंगा से संकेत है कि चाहे जो भी प्रतिकूलता क्यों न हों आदमी का साहस परास्त नहीं किया जा सकता । मछलियों को मालूम है का संकेत है जो सक्षम होता है वही टिकता है । यहां महान वैज्ञानिक चार्ल्स डारविन का survival of the fittest सिद्धान्त याद आता है । अधूरा है दिन में विपरीत तत्वों की एक रूपता की ध्वनि सुनी जा सकती है । अर्थात् परस्पर विरोधी तत्व हाकर भी उनमें सह- अस्तित्व बना रहता है । सापेक्षता का यह एक वैज्ञानिक सिध्दान्त है । बुध्द कविता में नवनीत ससंार से पलायन का अपने स्तर से प्रतिरोध करते हैं । आज के संवेदना शून्य और हृदय विहीन समाज में मनुष्य सर्प से भी अधिक खतरनाक हो चुका है - ऐसे डंसता है कि साप भी .......। होश में तो हो कविता में कला साधना को एक कठिन कर्म बता कर नवनीत उन पर व्यंग्य करते हैं जो इसे खेल समझते हैं -

बरसों रियाज़ किया है /  तब कहीं जाकर साधा है सुर /  पाया है सम ....../ और तुम सिर्फ साज़ छूकर / चाहते हो उस्ताद होना । होश में तो हो ..... । 

'अगर सीख लेता है'  में ध्वनि है कि स्थितियों को अपने अनुकूल कैसे बनाया जाए उसके लिय सार्थक संक्रियायें जरूरी है । कोई लक्ष्य बिना दृष्टि - विज़न - के पाना सम्भव नही है । आंख के बिना धनुर्धर नहीं हुआ जा सकता । कवि इस मूल्यहीनता के समय में गोरख और मछन्दर को याद करता है । संकेत है कि बिना विद्रोही और दृष्टिवान नेतृत्व के चेतना की अग्नि नही प्रज्वलित नहीं हो सकती  कवि ने अनेक कविताओं में अंध आदर भाव , कुटिलता , दुश्चक्र , धोखा-धड़ी तथा विश्वासघात आदि मानवीय दुर्बलताओं को भी बड़ी सजगता से व्यक्त किया है । कई स्थानों पर नवनीत आधारहीनता को बतातते हैं । कई जगह विपरीत संस्थितियों के स्तर विभेद की बात करते है । कई कवितायें संकेत देती है कि आदमी अपने अस्तित्व के लिए अकेला संघर्ष कर सफल नहीं हो सकता । उसके लिए सामूहिक संघर्ष ही एक विकल्प है । 

कवि के अनुसार आज  का दौर दिशाहीनता और पराभव मानसिकता का दौर है । परस्पर छल-कपट की दुरभिसंधिया दिखई देती हैं । सामान्य मनुष्य जैसे शक्तिशाली वर्ग के हाथ की कठपुतली हो जैसे -

हम सिर्फ औज़ार भर हैं / जैसे ही पूरे होगे तुम्हारे मनसूबे / रख दिये जायेंगे संभाल कर / फिर किसी टूल बॉक्स में / फिर काम आने के लिये । 

यह आज की एक बड़ी त्रासदी है जिसकी ओर कवि ने संकेत किया है । उन्हें हरा नहीं सकते कविता में ध्वनि है कि कवि के नाशील शब्द कभी दास नहीं हो सकते

मेरे शब्द खुद ही हैं अपने ब्रह्म.......
उन्हें हरा नहीं सकते तुम  । 

मेरी आग कविता में कवि ने कवि की प्रतिबद्धता का बड़ा सार्थक प्रश्न खड़ा किया है -

 वे लोग / हर तरफ से / हर तरह से / करने को राख मेरी आग को / फिर भी मैं / करता रहता हूं जतन / उसे उजाला बनाने को /..........बहुत खिलाफ है मेरे  / हवाओं के रुख / फिर भी मैं प्रतिबध्द हूं / देती रहती है / भरोसा मुझे / मेरी आग । 

यह कवि की बड़ी ताकत है । विपरीत स्थितियों में अपनी प्रतिबद्धता को न त्यागना । आज आए दिन अवसरवाद के असर में कवि अपना चेहरा बदलते दिखते हैं । कवि ही नहीं बल्कि कमजा़ेर मन के समीक्षक भी । कवि ने सामाजिक  विषमता पर अनेक कवितायें लिखी हैं । एक वर्ग है जिसे दुनिया की सारी सम्पत्ति उपलब्ध है । उन्ही के बल से दुनिया चलती है ।  दूसरे वे हैं जो उनकी दया पर - मन मर्जी पर - खैरात पर - कीड़े मकोड़ों की तरह जीने मरने वाले हैं - हम । 

यहां प्रमुख बात है कि कवि अपने को उत्पीड़ितों के साथ रखता है । वह लोक का पक्षधर है । कवि मानता है कि सामान्य से विशेष बनता है । अर्थात्    हाशिए, सामान्य ही मुख पृष्ठ को मुख पृष्ठ बनाते हें । ध्वनि है सामान्य से विशेष महत्वपूर्ण होते हैं । कवि कविता मे अविकास, अनास्था, संशय, निरंकुश अभिव्यक्ति, अर्थ की अराजकता और लय विहीनता को उचित नहीं मानता । नवनीत ने कविता पर भी अनेक कवितायें लिखी हैं । इन कविताओं में उनकी काव्य मान्यतायें व्यक्त हुई हैं । कवि की अवधारणा है कि कविता को प्रमुखत: पहले कविता के प्रतिमान पर खरा उतरना जरूरी है 

मैं पढ़ता हूं  कविता / यह देख कर कि / कि कविता  में/ कविता है कि नहीं / कवि कोई भी हो ....। 

नवनीत उन मूल्यहीन लोगों पर व्यंग्य करते हैं जो अवसरवाद से ग्रस्त अपने हित साधने को चाहे जिस सीमा तक जा सकते है प्रकरान्तर से कवि कर्म के व्यापक सन्दर्भ में कवि आचरण का सवाल उठाता है । जो अच्छा इन्सान नहीं वह एक अच्छा कवि होगा सन्देह है । पहले एक बेहतर इन्सान ।  बाद में कवि ।  कविता भी अपने से किए गये छल को परखती है । जैसे मूल्यहीन बन कर अपने स्वार्थ साधते रहना । लोगों को धोखा देना ! कविता ऐसे लोगों से छिटककर दूर चली जाती है । कविता लिख कर भी ऐसे लोग कभी कवि नहीं हो पाते । आज ऐसे लेखक बहुत है जो स्वयं सेवी संस्थायें चलाने को धन की हेरा-फेरी करते है । पर लेखन में आदर्श बखानते हैं ।  ऐसे छद्मवेशी लेखक कभी असरदार और स्थाई सृजन नहीं कर सकते । कवि मानता है कि यथार्थ मात्र सतह का सच नहीं है । जो आसानी से आंखों को दिखता है वह छाया प्रतीति है । सार तत्व के लिय हमें वस्तु की रगों तक जाना होता है जो सबके वश का नहीं होेता । बड़ा और सिद्ध कवि ही यह कर पाता है । 

नवनीत मानते हैं कि साहित्य में मूल्येंका पतन कवि के आचण में गिरावट के कारण हुआ है । बाज़ार और पूजीवदी मनोवृत्ति के कारण साहित्य में भी लेन-देन की प्रवृत्ति बढ़ी है । यह बात कवि ने बड़ी बे-बाकी से गठ -जोड़-तोड़ कविता में तीखे व्यंग्य के माध्यम से कही है - गठजोड़   /  मैं तुम्हें चाटूं / तू मुझे चाट / गठ तोड़ / मैं तुम्हें काटूं / तू मुझे काट। 

मैं नवनीत की इस बात से सोलह आने सहमत हूं । आज अधिकांश समीक्षा इसी मनोभाूमि का दुष्परिणाम   है । मैं ने इसे अपने एक आलेख में छद्मवेशी आलोचना का कठिन दौर कहा है । दिल्ली इसका शक्ति केन्द्र है । बहररहाल , नवनीत की यह कविता मुझे नागार्जुन के तीखे व्यंग्य की याद ताज़ा करती है । कुलीन अभिरुचि वाले कवि और समीक्षक शायद इसे पसन्द न करें । क्योकि वे इसकी गिरफ्त में आते हैं । इतने साहस से लिखने वाल कवि हिन्दी में विरल होते जा रहे है । इस कवि ने कविता में चमत्कार पैदा करने वाले कवियों का भी विरोध किया है । जादूगर कमाल करते हैं कविता इस बात का साक्ष्य है  । अनेक कवि हैं दृइनमें सुनाम धन्य कवि भी - ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करने वाले कवि तक - जो शब्द क्रीड़ा और चमत्कारिक मुहावरे से आजके रिक्त मन मध्य वर्ग का सस्ता मनोरंजन कराते है । कविता चमत्कार से बड़ी नहीं होती । वह बड़ी होती है जीवन के गहन पीड़ाओं की खोज करने पर । नवनीत अपनी धरती अपने लोगों के बीच ही रहना पसन्द करते हैं । कैसे रहूं  कविता में कहा है - 

कैसे रहूं  / तुम्हारे हवाई / आसमानी किलों / आलीशान महलों में  / जिनमें सांसों की आस / हवाओं के रुख पर निर्भर है / अपने लिये तो / मेरी अपनी जमीन ही भली /जो पैर टिकाने को  / जगह तो देती है । 

हमें अपनी धरती अपने बीजों से ही कविता में काम लेना चाहिए। मंगेतू न तो वस्त्र अच्छे । न बीज । इसी को किसी कवि की जातीयता कह सकते हैं । सबके यहां घराने हैं । अर्थात् कवियों ने  निर्लज्ज समझौते करके अपने -अपने गुट बना लिए हैं।  अगर कोई संजीदा समीक्षक कोई ढंग की बात कहता है जो उनके हित में नही तो उस समीक्षक का विरोध करना शुरू कर देते  हैं। मेरे एक वरिष्ठ समीक्षक मित्र ने बड़े दुख से कहा कि जिसकी भी तारीफ न करो वह नाराज हो जाता है । अतः लिखना ही छोड़ता हूं । लेकिन कवि की तरह समीक्षक में भी साहस हो कि वह दबाव में न आए । सबके यहां घराने हैं कविता में इसी निर्लज्ज गुटबन्दी की बात कहते हैं । इसके सीधा सम्बन्ध दरबार की मानसिकता से जुड़ा है - 

सब के यहां घराने हैं 
तुम मुझे दरबार भिजवाते रहना 
मैं तुम्हें दरबार भिजवाता रहूंगा । 

अधिकांश कवियों पर पूंजी बहुत कम होती है । पर लेन-देन के समझौते कर अपनी गोटी फिट करते रहते हैं ं 
ऐसे कवि और उनकी कविता को इतिहास अपनी विशाल झाड़ू से सकेर-बुहार कर एक तरफ कचरे में फैंकता है। 

नवनीत अपनी क्षमता से कवि को जीने के लिए  एक विकल्प भी सुझाते है - 

करेगी पल्लवित मुझे 
और लहलहाऊंगा में भी  
तुम्हारे इस विराट में 
अपने बूते । 

कवि को बहुत  धैर्य है । वह समय की प्रतीक्षा में अडिग है । न वह लेन-देन कर सकता है । न आपा-धापी । 

तुम  जाओ
तलाशो  आराम से 
सम्भावनायें
लेकिन केवल अपने लिए 
मैं जहां हूं
ठीक हूं .........। 

अतः कविता कवि की क्षमता और उसके संघर्ष से जन्मती है । इसी लिए संकलन का नाम बहुत ही सार्थक बन  पड़ा है , ‘जैसे जिनके धनुष’ वैसे ही उनके तीर । जैसा कवि का कद वैसी उसकी कविता । कविता से छल नहीं किया जा सकता ।
नवनीत के संकलन में उनके पूर्व संकलनों  से अधिक विस्तार है । यहां फलक भी बड़ा है विविधता भी प्रीतिकर है।  भाषा में जैसे नई ताकत पैदा हुई हो । मुझे नवनीत से अभी और बड़ी सम्भावना की अपेक्षा है ।

                              
---विजेन्द्र

3 comments:

  1. सब के यहां घराने हैं
    तुम मुझे दरबार भिजवाते रहना
    मैं तुम्हें दरबार भिजवाता रहूंगा ।

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  2. बेहतरीन समीक्षा

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