एक खुला खत आमिर खान के नाम
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प्रिय आमिर खान
सलाम वालेकुम
सत्रह वर्ष की उम्र में आपको पहली दफा पर्दे पर देखा था, 'क़यामत से क़यामत तक' फिल्म में! फिल्म हिट हुई, आप हरदिल अजीज़ कलाकार बन गए थे! इस मुल्क आपके करोड़ों चाहने वाले पैदा हो गए! आपके नाम के आगे जो सरनेम लगता है न, "खान", मुझे नहीं लगता कि इसके होने या न होने का आपकी एक्टिंग, स्टारडम या हमारी चाहत पर कोई असर पड़ा होगा या पड़ता होगा! इस देश की जनता को उससे कहीं बढ़कर मोहब्बत और इज्जत अता फरमाई, जितनी कि आपके चचा मरहूम नासिर हुसैन साहब, आपके वालिद मरहूम ताहिर हुसैन साहब और आपके चचेरे भाई मंसूर खान साहब को दी थी! मेरा ख्याल है, इसकी वजह भी उनकी शानदार फिल्मे, इंडस्ट्री में उनका यादगार काम और बाकमाल शख्सियत रही, उनका सरनेम या उनका धर्म नहीं! आपके खानदान के छोटे साहबजादे आपके भाई फैज़ल खान को नकारते समय भी कारण उनकी ख़राब एक्टिंग रही उनका धर्म नही! आपके भांजे इमरान खान को भी इस मुल्क ने सर आँखों पर बिठाया इसलिए नही कि उनके वालिद हिन्दू थे, बल्कि इसलिए उनकी पहली फिल्म लोगों को पसंद आई थी और बाद में उनके चयन और एक्टिंग में कुछ नया न कर पाने के कारण वे उतना नहीं चल पाए!
हम लोग आमिर खान की फिल्म देखने इसीलिए थिएटर पर जाते हैं कि आमिर खान एक कमाल का अभिनेता है, जो हर किरदार में जान फूंक देता है, जो इस बात की फूलप्रूफ गारंटी है कि फिल्म यकीनन शानदार और कुछ खास ही होगी, इसलिए नहीं कि दूसरे खानों की तरह आपकी पहली बीवी रीना दत्त और दूसरी बीवी किरण राव हिन्दू है! यकीन कीजिये वे अगर राहेला या कुलसुम होतीं तो भी इससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ता! पर हाँ इतना जरुर है कि आपकी निजी जिन्दगी से हमेशा यह ज़ाहिर हुआ कि आप भी धर्म से ऊपर उठकर सोचते हैं और फैसले लेते हैं! आपकी निजी जिंदगी में भी कम उथल पुथल नहीं रही, चाहे वो रीना से आपका तलाक हो, दूसरी हीरोइनों के साथ आपके रिश्तों की खबरें हों, फैज़ल की मानसिक स्थिति बिगड़ने पर आपके ऊपर लगाये गए भयानक आरोप हों या फिर दूसरे खानों के साथ आपकी तनातनी की खबरें हों, न तो हमारा प्यार ही आपके लिए कम हुआ और न ही आपने कभी यह ज़ाहिर किया कि आप इस मुल्क में खुश नहीं हैं! आप को कहीं, किसी किस्म का खतरा है, आप सुरक्षित हैं!
बात फिल्मों की हो, सत्यमेव जयते की हो या विज्ञापनों और दूसरी गतिविधियों की हो, यह मुल्क आपकी हर अदा पर कुर्बान रहा! आपने गाया, "पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा..." और हमने साथ में सुर मिलाया, जरुर करेगा, आपने गाया, "परदेसी, परदेसी, जाना नहीं...." हम साथ में सुर मिलाकर आपके साथ रोये, आपने कहा, सत्यमेव जयते, और पूरा देश ताल से ताल मिलाकर आपके साथ खड़ा हो गया, आपके कार्यक्रम की बहसें देशव्यापी अभियान बन गयीं! आप अरबों रुपयों की बारिश में नहाते रहे और हम आप पर दिलों-जान निसार करते रहे! पर कभी कहीं, किसी एक पल नहीं लगा कि इस देश में आप दुखी हैं, असुरक्षित हैं, इतने असुरक्षित कि आपकी पत्नी किरण राव को लगता है कि आपको यह देश छोड़ देना चाहिए!!!! वो भी असहिष्णुता के चलते????? असहिष्णुता का मतलब समझते हैं आप???? एक आम मुस्लिम की पीड़ा समझते हैं आप????? वह अपने ही मजहबी गुमराह भाई-बंधुओं की वजह से कितना कुछ झेलता है, जानते हैं आप????
मैं पूछती हूँ, और इस मुल्क की जनता, जो शुक्रवार को टिकट खिड़की पर आपके नाम पर अपनी खून पसीने की कमाई से नोटों का अम्बार लगा देती है, आपसे पूछती है कि आपने बदले में आजतक उनके लिए क्या किया???? उनके लिए जो किया क्या वह संतोषजनक है??? क्या आपका इस मुल्क की जनता के लिए कोई फ़र्ज़ नहीं बनता था???????? आप इस मुल्क को छोड़कर जाने पर विचार करना चाहते हैं, क्यों न करें, कीडे-मकोड़ों से रेंगते इस मुल्क के मूर्ख वाशिंदों को उनका तोहफा मिलना ही चाहिए, जो आप जैसो को इसीलिए भगवान बना पूजता है कि किसी एक दिन आप खड़े हों, एक भरपूर अंगड़ाई लेकर दायें-बाएं नज़र घुमाएँ और आपको अपना मुस्लिम होना याद आये, आप एकाएक हिस्टीरियाई अंदाज़ में चीखें, कि
याखुदा, मुझे इस मुल्क में खतरा है!!!!!!
ओह, मैं यहाँ असुरक्षित हूँ!!!!!!!!!!!
अल्लाह, मैं अपने "अल्पसंख्यक" होने की सज़ा भुगत रहा हूँ!!!!!!!!
याखुदा, मुझे इस मुल्क में खतरा है!!!!!!
ओह, मैं यहाँ असुरक्षित हूँ!!!!!!!!!!!
अल्लाह, मैं अपने "अल्पसंख्यक" होने की सज़ा भुगत रहा हूँ!!!!!!!!
जाइए, शौक़ से जाइये, किसी ऐसे मुल्क में जाइये जहाँ आपको मुहाजिर कहकर चार फुट दूर रखा जाये, किसी ऐसे मुल्क में जाइये जहाँ नस्लवाद के तहत आप सडक पर मार दिए जाएँ, यकीन मानिये, न तो आप पहले हैं और न ही आखिरी होंगे, इस अभागे मुल्क को ऐसी नाशुक्रों को झेलने की आदत , जनाब भरपूर आदत है! मुबारक हो आप भी उस भीड़ में शामिल हुए जो अपने आलीशान अपार्टमेंट और नोटों के ढेर पर खड़े हो चिल्लाती है, "मुझे बचाओ, मैं अल्पसंख्यक हूँ!!!!!"
----अंजू शर्मा
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, कहीं ई-बुक आपकी नींद तो नहीं चुरा रहे - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDelete"असहिष्णुता" कोरी कल्पना है / बुद्धिमान लेखकों ने इसे मूर्त रूप दिया / फिल्मों वाले इसे परदे पे उतारने की कोशिश कर रहें हैं /
ReplyDeleteवर्णमाला के पहले अक्षर का दुरूपयोग हो रहा है /
ReplyDeleteदुनिया जब जंग के मैदान मे खड़ी है ऐसे समय ऐसे लोग नायक नहीं हो सकते.....हमें अपनी भूल सुधारनी होगी.....और हमें इन्हें भूलना भी होगा /
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