Tuesday, August 22, 2017

तपते जेठ में गुलमोहर जैसा :नई किताब






तपते जेठ में गुलमोहर जैसा ...

यही नाम है सपना सिंह के सद्य प्रकाशित उपन्यास का! सपना जी का ये उपन्यास जब मैंने पढ़ा था तो अविलम्ब उनसे लम्बी बात हुई! उपन्यास की रचना प्रक्रिया, इसके विषय, उसकी पृष्ठभूमि और उसके पात्रों सभी पर विस्तार से चर्चा हुई! और इस लम्बी चर्चा में मैंने जाना कि सपना जी ने भावों की मिट्टी से इस उपन्यास और उसके पात्रों को गढ़ा! ये कहानी डॉ सुविज्ञ और अपराजिता उर्फ़ अप्पी के प्रेम की कहानी है! प्रेम सदा से अपरिभाषित, अपरिमेय रहा है पर डॉ सुविज्ञ और अप्पी का प्रेम तो कई मायनों में अनोखा है, विचित्र है! वे प्रेम को पा लेने की सांसारिक व्याख्या से परे एक दूसरे को खोकर भी पा लेते हैं! यहाँ जितनी आवेगमेयता है उतना भी आत्मनियन्त्रण भी है!


ये दो प्रेमी है जो एक दूसरे के प्रेम में हैं पर एक दूसरे के लिए नहीं बने! ये दो प्रेमी हैं जो एक दूसरे से दूर रहकर भी एक दूसरे में घुले-मिले हैं! वहीँ दूसरी ओर वे एक दूसरे से अदृश्य डोर से बंधे रहकर भी दो सर्वथा भिन्न संसारों में विचरते हैं! वे जितने एक दूसरे के हैं उतने अपने अपनों के भी हैं! जितने करीब हैं उतने ही दूर हैं और जितने भौतिक रूप से एक दूसरे से दूर हैं उतने ही एक दूसरे के मन के करीब हैं! इन दोनों की यही विचित्र प्रेम कहानी इस उपन्यास का मुख्य तत्व है!


अप्पी के डॉ सुविज्ञ के लिए कच्ची उम्र के आकर्षण या कह लीजिये क्रश से शुरू हुई कहानी उम्र के उस पड़ाव पर आकर खत्म होती है जहाँ अप्पी प्रेम को मन में बसाये अपनी तलाश में निकल पड़ती है! इस पूरी कहानी में 'मिलने की ख़ुशी न मिलने के ग़म' से परे दोनों उम्र भर इस अहसास को जीते हैं कि वे एक दूसरे के प्रेम में हैं! यह प्रेम न तो कुछ मांगता हैं और न ही अपने सांसारिक साथी से निबाह के रास्ते में कभी दीवार ही बनकर खड़ा होता है! इसकी सात्विकता, इसकी ईमानदारी और आचरण में बनी रहकर इन्हें आम प्रेमियों की पंक्ति से अलग खड़ा करती है!  यह रिश्ता विशिष्ट इसलिए भी है कि अपने अपने जीवनसाथी के साथ अपने वैवाहिक रिश्ते की पारिवारिक, शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आर्थिक जिम्मेदारियों को भरपूर जीते हुए भी वे किसी एक कोने में अपने प्रेम को जिलाए रखते हैं!


उपन्यास की कहानी सुगठित है और भाषा सहज, सरल,आत्मीय और सम्प्रेषनीय! इसके पात्र भी उतने ही सरल और प्रेममय हैं कि ये आपके भीतर कहीं गहरे से उतरकर आपकी भावनाओं को छू लेते हैं! कभी भी किसी भी क्षण यदि आप किसी के प्रेम में रहे हैं तो स्वतः ही इस कहानी से जुड़ जाएँगे और यही इस कहानी की सशक्तता भी है! और यही प्रेम जब परिपक्व होता है तो इसका विस्तार देश, दुनिया और समाज तक हो जाता है!


सपना जी इससे पहले लगातार कहानियां लिखती रही हैं! यह उनका पहला ही उपन्यास है जो उम्मीद जगाता है कि उनकी कलम से अभी ऐसे कई और सुंदर उपन्यास आने बाकी है! उन्हें हार्दिक शुभकामनायें ......


प्रकाशक : ज्योतिपर्व प्रकाशन, 99, ज्ञान खंड -3, इन्दिरापुरम, गाज़ियाबाद , फ़ोन : 9953502429, पेपरबैक संस्करण, रु. 199/-
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