वरिष्ठ लेखिका रंजना जायसवाल कविता और गद्य दोनों विधाओं में सिद्धहस्त है! उनकी नई कहानी 'किले में छेद' में मानवीय संवेदनाओं और व्यवहार का सूक्ष्म विश्लेषण है! जीवन में नैतिकता और जरूरतों के बीच का चुनाव सबके लिए इतना मुश्किल नहीं होता! पढ़िए उनकी यह बहसतलब कहानी और हाँ प्रतिक्रिया देना न भूलिएगा!
सीमा मेरी बहुत
ही घनिष्ठ मित्र है हालांकि वह उम्र में मुझसे कई साल छोटी है |दरअसल उसकी बड़ी बहन असीमा मेरी क्लासमेट थी |दोनों का एक-दूसरे के घर खूब आना-जाना था |इसी आने-जाने के क्रम में
मेरी दोस्ती सीमा से हुई |सीमा उम्र में छोटी होते हुए भी असीमा से ज्यादा मैच्योर थी |सुलझी हुई ....सलीकेदार और बहुत ही सुंदर |वैसे सुंदर तो असीमा भी थी ,पर सीमा के चेहरे
और आँखों में अजीब सी मासूमियत थी |वह जो कुछ बोलती ...तोलकर बोलती |उससे मुझे बहुत
कुछ सीखने को मिला |वह बहुत अच्छा पेंटिंग
बनाती थी |उसकी कई लड़कों से दोस्ती
थी ,पर वह किसी को नहीं बताती थी ,मुझे भी नहीं |पूछने पर साफ कह
देती –‘दी ,यह मेरे वसूलों के खिलाफ है |मेरे हिसाब से
किसी को भी अपना पर्सनल किसी से भी शेयर नहीं करना चाहिए |कौन जाने कोई कब इसका फायदा उठा ले ?’मुझे उसकी यह बात अच्छी नहीं लगी क्योंकि मैं
उससे कोई भी बात नहीं छिपाती थी |मेरा तर्क यह
रहता था कि जब मैं कुछ गलत करती ही नहीं ,फिर क्या छिपाना ?पर जब वह ऐसे लोगों को बेवकूफ कहती ,तब मुझे लगता यह कि क्या यह मुझे भी बेवकूफ समझती है?
एक बार एक दोस्त के अफेयर पर उसने टिप्पणी की-‘यह लस्ट है ,प्रेम नहीं |’ तो मुझसे नहीं रहा गया मैंने कहा –दूसरों का
प्रेम हमें लस्ट लगता है और अपना लस्ट भी प्रेम |
तब वह मेरा मुंह
ताकती रह गयी |मेरी बात उसे कहीं गहरे
छू गयी थी और उसने फिर किसी के प्रेम सम्बन्धों पर टिप्पणी नहीं की |
समय बीता| असीमा की शादी हो गयी |नौकरी के कारण
मैं भी दूसरे शहर की वासी हुई पर
उससे संपर्क बना रहा | जब मैंने अपने आदर्शवाद
में एक साधारण,बेरोजगार,दलित युवक से विवाह का निर्णय लिया तो वह बहुत नाराज हुई |फोन पर देर तक मुझे समझाती रही |उसने कहा –शादी के लिए लड़के में कुछ तो होना ही चाहिए |या तो वह इतना
स्मार्ट और सुंदर हो कि देखकर ही मन प्रसन्न हो जाए या तो खूब अमीर हो ताकि जीवन
ऐशो-आराम से कटे या किसी बड़े पद पर हो ,ताकि आपका भी मान बढ़े या फिर अपनी जाति और उम्र का खाते-पीते घर का ठीक-ठाक
लड़का हो |पर आप जिस लड़के से शादी करने जा रही हैं उसमें
तो इनमें से कोई भी क्वालिटी
नहीं |न रूप-रंग,न पद ,न धन न अपनी जाति ही |क्या देखकर रीझी
हैं ?यह एक दिन का सौदा नहीं है ,पूरे जीवन की बात है |यदि आप सोचती हैं
कि आपसे हर बात में कमतर लड़का आपकी इज्जत करेगा तो भूल जाइए |ऐसे लोग जबर्दस्त हीन भावना के शिकार होते हैं विशेषकर
पुरूष |वे अपने से श्रेष्ठ स्त्री को बरदास्त ही नहीं
कर सकते | वे जब स्त्री से खुद को कमतर पाते
हैं तो ईर्ष्याग्रस्त हो जाते हैं और अपना काम्प्लेक्स किसी न किसी माध्यम से स्त्री को प्रताड़ित कर
निकालते हैं |
पर मैंने उसकी बात नहीं मानी ,क्योंकि लड़के में एक विशेष गुण की उसने चर्चा नहीं की ,वह है –एक बेहतर इंसान होना |अशोक में भले ही अन्य गुणों का अभाव था ,पर वे एक बेहतर
इंसान लगे थे|
पर वर्ष बीतते न बीतते मुझे अपनी
गलती का अहसास होने लगा |अशोक की अप्रकट हीन भावनाओं ने मेरे आत्मविश्वास को निगलना शुरू कर
दिया |मैं ठगी गयी थी |सीमा
की बातें सही साबित हुई थीं |आखिरकार मैं अशोक को नहीं झेल
पाई और उससे अलग हो गयी |संवेदना ,प्रेम
और विश्वास से रहित रिश्ता मैं नहीं जी सकती थी |मेरे
अलग होने के निर्णय की सीमा ने सराहना की |
कुछ समय बाद सीमा की भी शादी हो गयी |लड़का
[सुदीप]सुंदर ,पढ़ा-लिखा और बड़े शहर का था |अपना बिजनेस था |खाता-पीता मध्यमवर्गीय परिवार था |सीमा जैसी सुन्दर ,गुणी लड़की को पाकर सुदीप निहाल हो
उठा ,पर सीमा उतनी खुश नहीं थी |सुदीप
के परिवार वाले शहर में रहने के बावजूद विचारों और रहन-सहन से देहाती थे |सुदीप भी बस कपड़ों से ही आधुनिक दिखता था |उसने सीमा की पेंटिंग्स की बेकद्री करते हुए स्टोर में रखवा
दिया |उसके अनुसार –‘सजावट की बहुत सी
वस्तुएँ बाजार में सस्ते दामों में उपलब्ध हैं तो इतनी महंगी पेंटिग क्यों बनाई
जाए ?’ वह बड़ा ही शंकालू किस्म का था |सीमा के ज्यादा मायके आने-जाने पर भी
उसने रोक लगा दी थी |सीमा मशीनी गुड़िया
की तरह घर-गृहस्थी में रमी अपना व्यक्तित्व ,यहाँ तक की
अस्तित्व भी भूल चुकी थी |
कभी-कभार उसके
मायके वाले घर में उससे मुलाक़ात होती थी तो उसे देखकर बड़ा दुख होता था |वह एक दबी हुई घरेलू टाइप की औरत लगती |उसकी सुंदरता धूमिल पड़ गयी थी |पुरानी तेजस्विता जाने कहाँ लुप्त हो गयी थी |वह ससुराल के सारे अन्याय चुपचाप सह रही थी क्योंकि जानती
थी कि मायके वाले अपनी इज्जत के कारण अपने पास
रखेंगे नहीं और मेरी तरह पति से अलग होकर समाज को
सहना उसके बस की बात नहीं थी|वैसे भी उसने एक बार कहा था –बहू को ससुराल में रहकर ही अपना हक पाने की कोशिश करनी चाहिए |अलग होना तो उनका मनचाहा करना है |
चौदह वर्ष बीत गए |सुदीप के माता-पिता चल बसे |बहनें ब्याह कर
ससुराल चली गईं |छोटा भाई भी
बंटवारा करके अलग रहने लगा |अब घर में सुदीप,सीमा और उनकी दो बच्चियाँ थीं |अब वे ठीक ढंग से रह सकते थे पर सुदीप जस का तस था | उसने सीमा और बच्चियों को जैसे कैद कर लिया था |वह अपने घर को किला कहता था ,जिसमें कोई भी
रोशनदान या खिड़कियाँ नहीं थीं ताकि बाहरी दुनिया से आँख-मिचौली खेला जा सके |उसके इस व्यवहार और मानसिकता से बेटियाँ भी चिढ़ती थीं और मन
ही मन पिता से विरोध भाव रखती थीं |इस विरोध को हवा
देने का काम सीमा बीच-बीच में करती रहती थी |अपनी दमित अतृप्त
इच्छाओं को वह बेटियों के माध्यम से पूरा करने लगी थी |उन्हें लेटेस्ट फैशन के कपड़े खुद सिलकर पहनाती |पैसे की किल्लत थी |पति खाने –खर्चे
से ज्यादा देता नहीं था ,पर वह उसमें से ही
कुछ बचा लेती |बेटियों के बड़ी हो
जाने के बाद सुदीप सीमा को [शंकालू रहते हुए भी ]थोड़ी छूट देने लगा
था |सीमा खुद बाजार-हाट करने लगी थी|अब वह किशोर बेटियों को लेकर शंकित था |
दो वर्ष बाद एक विवाह समारोह में सीमा से मिलना हुआ तो मैं
उसे देखकर दंग रह गयी |उसका मानो
कायाकल्प हो गया था |किसी सेलिब्रेटी
की तरह ग्लैमरस दिख रही थी |रूप-रंग में गजब
का निखार था!
डिजायनर कपड़े और गहने पहने हुए थी |उसका
पर्स,चश्मा,मोबाइल,सैंडिल सब कुछ उसकी अमीरी
का प्रदर्शन कर रहा था |बेटियाँ भी कीमती,आधुनिक कपड़ों में थीं |क्या सीमा को
कोई जादू की छड़ी मिल गयी है या फिर अलादीन का चिराग ?जहां तक मुझे पता था सुदीप अभी
तक उसी आर्थिक अवस्था में था और आय का अन्य कोई साधन भी नहीं था |होगा
कुछ ...मैंने सोचा ...हो सकता है पुश्तैनी जायजात का कुछ हिस्सा बेच दिया हो ,पर सुदीप तो पत्नी और बेटियों को सादगी में रखने का पक्षपाती था | वह तो इतने महंगे गहने ...कपड़े नहीं खरीद सकता |
मिलने पर सीमा ने बताया भी कि सुदीप अभी तक वैसे का वैसा ही
है |वह खुद ही अपने तथा अपनी बेटियों का शौक पूरा करती है |खुद चीजें खरीदती है और कह देती है कि मायके से मिला है
|मायके वालों की संपन्नता को देखते हुए सुदीप को शक भी नहीं
होता |और फ्री में मिले कपड़े पहनने से उन्हें रोक भी नहीं पाता |हाँ,जब नाराज होता है
तो फिर से पत्नी और बच्चियों को बुर्के में रखने की बात करता है |
सीमा खुश दिख रही थी पर उसके चेहरे का भोलापन गायब था |उसके अंदर एक अजीब –सी बेचैनी मैंने देखी |पर सीमा ने पूछने पर भी कुछ नहीं बताया |बार-बार वह फोन में व्यस्त हो जाती थी |
इस बार गर्मियों की छुट्टी में मैं दो-चार दिन के लिए उसके
पास गयी तो उसने झट मेरे साथ मायके जाने का प्लान बना लिया |उसके ससुराल और
मायके के बीच मेरा घर पड़ता था |तय हुआ कि एक-दो
रोज वह मेरे घर रूकेगी और फिर मायके जाएगी |अपना काम छोड़कर
सुदीप जा नहीं पाता पर मैं गार्जियन की तरह साथ थी ,इसलिए उसने
खुशी-खुशी जाने की इजाजत दे दी |वैसे भी मायके से
काफी कुछ लाद-फांदकर सीमा लाती थी जो उसे अच्छा लगता था |अब उसे क्या पता था कि वह सब कुछ सीमा खुद खरीदती है |
हम टैक्सी से स्टेशन पहुंचे |रास्ते भर सीमा
फोन पर किसी से बातें करती रही थी |स्टेशन से थोड़ी
दूर पर सीमा ने टैक्सी रूकवा दी |हम उतरे ही थे कि
एक बड़ी -सी गाड़ी हमारे पास आकर रूक गयी |गाड़ी से एक अधेड़ अमीर
आदमी उतारा और उसने मेरे पैर छू लिए |सीमा और बच्चियाँ
उसे देखकर मुस्कुराई |...तो ये है सीमा की
जादू की छड़ी ...अलादीन का चिराग |आदमी में कहीं से
भी कोई सौंदर्य नहीं था |सुदीप के मुक़ाबले
तो वह कुछ भी नहीं था ,पर स्वभाव से बड़ा
विनयी और भक्त किस्म का था |सीमा और वह दोनों
हर बात में ‘जय माता दी’ कहते थे |हम उसकी कार से ही
चले |सीमा उस आदमी के साथ आगे पत्नी की ठसक से बैठी और मुझे
बच्चियों के साथ पिछली सीट पर बैठना पड़ा |कार अगले शहर के
एक बड़े होटल के पास रूक गयी |सीमा ने मुझसे कहा
–इस शहर में घूमने की कई सुंदर जगहें हैं |एक दिन रूक कर
चलेंगे |मैं क्या करती ?मुझे कुछ समझ में
नहीं आ रहा था |बरसों की दोस्ती
को एक झटके में तोड़कर आगे बढ़ जाना भी ठीक नहीं लग रहा था |बच्चियाँ उस आदमी से काफी हिली-मिली थीं |वे उससे फरमाईशे किए जा रही थीं |एक नार्मल फैमिली की तरह सब व्यवहार कर रहे थे जैसे वर्षों
से एक-दूसरे को जानते हों |बस मैं ही नाना
विचारों से घिरी हुई थी |मुझे अटपटा सा लग
रहा था |जैसे किसी धर्म संकट में फंस गयी होऊँ|आदमी ने दो रूम बुक कराया |एक मेरे और
बच्चियों के लिए दूसरा अपने और सीमा के लिए |शाम को सभी
नहा-धोकर घूमने निकले फिर लौटकर खाना खाया और सोने के लिए अपने-अपने कमरे में आ गए
|न सीमा के चेहरे पर कोई शिकन थी न बच्चियों के |आदमी भी बिलकुल सामान्य था जैसे वे लोग अक्सर इसी तरह रहते
आए हों ,बस एक मैं ही थी ,जो असामान्य हुई जा रही थी |
सीमा ने मुझसे हँसकर कहा-अगर सुदीप का फोन आए तो कह दीजिएगा आपके घर पहुँच गयी हूँ |यह झूठ भी मुझे बोलना पड़ा |रात भर मेरी आँखों के सामने सुदीप का चेहरा डोलता रहा |बेचारे ने कितने विश्वास के साथ अपने परिवार को मेरे साथ भेजा था ,पर मैं उसे धोखा दे रही हूँ |मैं क्यों ,मैं तो खुद इस्तेमाल की जा रही हूँ |धोखा तो उसे उसकी फैमिली दे रही है |उसके खिलाफ कितना बड़ा मोर्चा तैयार हो गया है और वह है कि अपने किले को और मजबूत बनाने में लगा हुआ है |
सीमा के मायके से भी फोन आ रहा था कि कहाँ तक पहुंची |सीमा के आने की खबर उन्हें थी |सीमा ने उनसे भी कह दिया कि मेरे घर है |दूसरे दिन आएगी |उधर से कुछ कहा
गया |सीमा ज़ोर से हंसी पर मुझे कुछ नहीं बताया |पर मैं जानती थी कि क्या कहा गया होगा |सीमा के मायके वाले मुझे पसंद नहीं करते थे ,क्योंकि मैंने अपने पति को छोड़ दिया था |वे सोचते थे मेरे घर आने-जाने से शरीफ बहू-बेटियाँ बिगड़
सकती हैं |उसके घर वाले ही क्यों ,ज़्यादातर लोगों को
यही लगता है |लोगों को मुझसे
खतरा महसूस होता है |मेरा अपराध यह है कि मैं एक अनिच्छित रिश्ते को नहीं ढो पाई ,पर जो किया सामने किया ।किसी को धोखा तो नहीं
दिया |ऐसे वैवाहिक रिश्ते से क्या लाभ,जहां पति या पत्नी अन्य सम्बन्धों में सुकून ढूंढते हो |उस साथ का क्या मतलब ,जहां दो के बीच कोई तीसरा हर घड़ी मौजूद हो |आर या पार के
सिद्धान्त पर चलना इतना बुरा क्यों है ?दुनिया के सामने
पति पत्नी का दिखावा और पीठ पीछे अफेयर्स |पर दुनिया में यही सब ज्यादा चल रहा है |तोड़ना गलत है,घसीटना नहीं |समाज धोखा खाने का आदी है सब कुछ जानकार
भी आँखों पर पट्टी बांधे रखता है |बड़े तो बड़े अब
बच्चे भी इसी दर्शन को अपनाने लगे हैं |उन्हें कुछ भी
अटपटा नहीं लगता ,बस उनकी जरूरतें
पूरी होती रहे |यही संसकार उन्हें
दिया जा रहा है |यही आज का फैशन है
|इस मायने में मैं ओल्ड फैशन हूँ |मुझे लग रहा है कि सीमा की बेटियाँ मुझे पसंद नहीं करतीं |वो तो सीमा के दबाव के कारण थोड़ा-बहुत लिहाज कर जाती हैं |उनकी हर बात में बनावट है ...दिखावा है |काम निकालने की कला सीख ली है उन्होंने | वे बकायदा कल के लिए प्लान बना रही हैं कि अंकल से क्या-क्या खरीदवाना है ?
बड़ी बेटी इस समय अट्ठारह की है ,पर लगती चौदह की है |उससे छोटी की उम्र चौदह की है |वह अपनी उम्र के
हिसाब से ठीक है | दोनों ही खुद को ओवर स्मार्ट समझती हैं |हर समय फैशन,मोबाइल और स्टाइल
की बातें ....|उनके पास न तो कोई विचार है ...न तमीज |उन्हें पता है कि उनकी माँ होटल के दूसरे कमरे में किसी
दूसरे आदमी के साथ है,पर उन्हें इससे
कोई फर्क नहीं पड़ रहा है |सबसे बड़ी बात वे एक शब्द भी माँ के खिलाफ नहीं बोल रही हैं |माँ-बेटियों
में गज़ब की अंडरस्टैंडिंग है |मैंने एक बार हल्के से बड़ी बेटी
को कुरेदा भी तो वह अपने पिता को गलत और माँ को सही ठहराने लगी और बाद में यह बात
सीमा को बता भी दी कि मैं उनकी थाह लेने की कोशिश कर रही थी |वे अपने पिता या किसी को भी ये भनक नहीं लगने देती थीं कि
सीमा किसी के साथ रिश्ते में है |उन्हें तो यह भी
अच्छा नहीं लग रहा था कि मैं साथ हूँ और सारी बात जान गयी हूँ ,पर सीमा ने शायद उन्हें समझा दिया था कि मुझसे बात आउट होने
का कोई खतरा नहीं |मैं वो पर्दा हूँ
जिसकी आड़ में वे दो दिन एक फैमिली की तरह रह सकेंगे |
पहले मैं समझती थी कि सीमा की बेटियाँ बहुत भोली हैं ...शायद कुछ नहीं समझती हैं |पर बाद में लगा कि
सीमा ने उनका ब्रेनवाश कर रखा है कि यह सब कुछ उनके बेहतरी के लिए है |अपने पिता से वे नफरत करती हैं |सीमा ने बचपन से ही उनके मन में पिता के खिलाफ जहर भरा है |सोचती हूँ क्या बच्चियों को बढ़ावा देकर
सीमा अपने पति से प्रतिशोध ले रही है ?क्या एक माँ को अपनी बेटियों को ऐसे संस्कार देने चाहिए ?आगे चलकर क्या होगा उनका ?बेटियों को इतना
एडवांस बनाने का नतीजा अच्छा तो नहीं ही होगा |एक बार सीमा ने बड़ी बेटी के अफेयर्स के बारें में बताया था, जिससे बड़ी मुश्किल से उसे निकाला गया था | यह बात भी सुदीप नहीं जान पाया था |
क्या होगा आगे ?सीमा का ...बच्चियों का ..?मुझे डर लग रहा है कहीं कल बेटियाँ भी ऐसा ही कुछ करें तो क्या सीमा उन्हें रोक
पाएगी ?कहीं उस आदमी ने जवान हो रही बेटियों पर नज़र गड़ा दी तो!..यदि सुदीप सब
कुछ जान जाए तो....कहीं यह आदमी पीछा छुड़ा ले तो...|फिर अपनी बढ़ी हुई
जरूरतों को कैसे पूरा करेगी सीमा ?और बेटियाँ क्या फिर
से घरेलू लड़कियों की भूमिका में आ पाएँगी ?
कल क्या होगा ,ये तो भविष्य के
गर्भ में है पर अभी तो सब खुश हैं |मैंने सोच लिया जो
भी हो मैं आगे खुद को
इस्तेमाल नहीं होने दूँगी |सीमा मेरी आड़ में शिकार नहीं कर सकेगी |बाकी उसकी अपनी
जिंदगी है ,जो चाहे करे |
उस घटना के बाद सीमा से मेरी मुलाक़ात नहीं हो
पाई है |पर सीमा फोन पर मुझसे घंटों बतियाती
है |वह भी उस आदमी की बातें ,उसकी ही प्रशंसा |पति के बारे में हमेशा उपेक्षा से बात करती है |उसकी कोई बात उसे अच्छी नहीं लगती |वह उस दिन की
प्रतीक्षा में है ,जब बेटियाँ अपने
घर चली जाएंगी और वह आदमी भी अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त हो लेगा |फिर दोनों साथ रहेंगे |अभी दोनों
अपने-अपने परिवारों के लिए त्याग कर रहे हैं |सीमा बड़े मनोयोग
से करवाचौथ करती है|पति की शारीरिक आकांक्षाओं को पूरा करती है |घर-परिवार
संभालती है |रिश्ते-नाते निभाती है |व्रत-उपवास,पूजा-पाठ सब करती है पर एक दूसरे पुरूष से प्यार भी करती है |मैं सोच भी नहीं पाती कि वह इतना कुछ कैसे मैनेज कर लेती है ?उसके हँसते हुए चेहरे और खुशहाल जीवन को देखकर कोई भी ईर्ष्या कर सकता है |
सुदीप तो सोच भी नहीं पाएगा कि उसकी बाहों में
लिपटी सीमा किसी और के सपने देखती है |सपना ही क्यों अवसर मिलते ही उसे
हकीकत का रूप भी दे देती है |सुदीप पर तरस आता है
कि उसने सीमा को खो दिया है पर इसमें सिर्फ सीमा की ही नहीं,
सुदीप की भी तो गलती है |आज भी वह अपने घर को किला कहता है |उसे क्या पता उसके किले में कभी का छेद हो चुका है |
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(चित्र : साभार इन्टरनेट से )
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व्यक्तिगत परिचय
जन्म – ०३ अगस्त को पूर्वी उत्तर-प्रदेश के पड़रौना
जिले में |
आरम्भिक शिक्षा –पड़रौना
में |
उच्च-शिक्षा –गोरखपुर विश्वविद्यालय से “’प्रेमचन्द
का साहित्य और नारी-जागरण”’ विषय पर पी-एच.डी |
प्रकाशन –आलोचना ,हंस ,वाक् ,नया ज्ञानोदय,समकालीन भारतीय
साहित्य,वसुधा,वागर्थ,संवेद सहित राष्ट्रीय-स्तर की सभी पत्रिकाओं तथा जनसत्ता
,राष्ट्रीय सहारा,दैनिक जागरण,हिंदुस्तान इत्यादि पत्रों के राष्ट्रीय,साहित्यिक
परिशिष्ठों पर ससम्मान कविता,कहानी ,लेख व समीक्षाएँ प्रकाशित |
अन्य गतिविधियाँ-साहित्य के अलावा स्त्री-मुक्ति
आंदोलनों तथा जन-आंदोलनों में सक्रिय भागेदारी |२००० से साहित्यिक संस्था ‘सृजन’के
माध्यम
से निरंतर साहित्यिक गोष्ठियों का आयोजन | साथ में अध्यापन भी |
प्रकाशित कृतियाँ –कविता-संग्रह –
मछलियाँ देखती हैं सपने
[२००२]लोकायत प्रकाशन,वाराणसी
दुःख-पतंग [२००७],अनामिका प्रकाशन,इलाहाबाद
जिंदगी के कागज पर
[२००९],शिल्पायन
,दिल्ली
माया नहीं मनुष्य
[२००९],संवेद
फाउंडेशन
जब मैं स्त्री हूँ
[२००९],नयी
किताब,नयी दिल्ली
सिर्फ कागज पर
नहीं[२०१२],वाणी
प्रकाशन,नयी दिल्ली
क्रांति है प्रेम
[2015]वाणी प्रकाशन,नयी
दिल्ली
कहानी-संग्रह –तुम्हें कुछ कहना है भर्तृहरि
[२०१०]शिल्पायन,दिल्ली
औरत के लिए [२०१३]बोधि
प्रकाशन,जयपुर
लेख-संग्रह –स्त्री और सेंसेक्स [२०११]सामयिक
प्रकाशन ,नयी दिल्ली
उपन्यास -..और मेघ
बरसते रहे ..[२०१३],सामयिक
प्रकाशन नयी दिल्ली
त्रिखंडिता [2017]वाणी
प्रकाशन,नयी
दिल्ली
सम्मान
अ .भा .अम्बिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार[मध्य-प्रदेश]पुस्तक
–मछलियाँ देखती हैं सपने|
भारतीय दलित –साहित्य अकादमी पुरस्कार [गोंडा ]
स्पेनिन साहित्य गौरव सम्मान [रांची,झारखंड]|पुस्तक-मछलियाँ
देखती हैं सपने |
विजय देव नारायण साही कविता सम्मान [लखनऊ,हिंदी
संस्थान ]पुस्तक –सिर्फ कागज पर नहीं |
भिखारी ठाकुर सम्मान [सीवान,बिहार ]
संपर्क –सृजन-ई.डब्ल्यू.एस-२१०,राप्ती-नगर-चतुर्थ-चरण,चरगाँवा,गोरखपुर,पिन-२७३013
|मोबाइल-०९४५१८१४९६७| ईमेल-dr.ranjana.jaiswal@gmail.com
(चित्र : साभार इन्टरनेट से )
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