आपने एक चालीस साला औरत का बयान पढ़ा और उसे कभी न भूलने वाला दस्तावेज बना दिया। अब पढ़िये एक साठ साला औरत का बयान, हर्फ़ ब हर्फ़ अलकनंदा साने ताई की कलम से, कवयित्री और मध्यप्रदेश की पहली महिला पत्रकार.....
'अ' अनार का सीख रही थी
तभी दौड़ते-भागते
'ड' आ पहुंचा डर लेकर
और माँ ने पकड़ा दिया
'स' सुरक्षा का
सुगन्धित फूल की तरह खिल रहा स्त्रीत्व
अपने साथ 'ल' लज्जा का लेकर आया
और साथ-साथ चलते रहे 'ड' और 'स' भी
'ड' के साथ कई बार जोड़ना चाहा 'नि' को
निडर बनाने के लिए
पर यह न हो सका
'स' के साथ 'अ' जरूर जुड़ गया
अनजाने, अनचाहे
और 'स' सुरक्षा का असुरक्षित हो गया
हाँफते - हाँफते ,
थकी-मांदी
चढ़ ही गई किसी तरह साठ सीढ़ियां
'अ' अनार का पीछे छूट गया था
धीरे -धीरे 'ड' डर का
और 'स' सुरक्षा का , जिसमें 'अ' जुड़ गया था
वह भी भूल गई मैं
'ल' लज्जा का भी कहीं गुम हो गया
अब मेरे साथ था
'म' मुक्त का
'ब' बेहिचक का
'ग' गरिमा का
'प' प्रणाम का
सब कुछ नया था
बस पुराना था तो अपने भीतर का
भरपूर स्त्रीत्व
उससे भी निवृृत्ति पाकर
मैं चलना चाहती थी
व्यक्ति के 'व' को साथ लेकर
लेकिन जल्दी ही जान गई
कि सब कुछ छोड़ा जा सकता है
पर अपने स्त्रीत्व को नहीं
याद दिलाता ही रहता है हर वक्त कोई न कोई
बहत्तर साल की उस नन के मुकाबले
अभी भी युवा हूँ मैं
और कितने ही कमज़र्फ़
घूम रहे हैं मेरे आस-पास भी .
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सब कुछ छोड़ा जा सकता है
ReplyDeleteपर अपने स्त्रीत्व को नहीं
याद दिलाता ही रहता है हर वक्त कोई न कोई............bahut sahi aur bahut badhiya