Saturday, February 14, 2015

मणि मोहन मेहता की कवितायें







पिछले कुछ समय से लगातार मणि मोहन मेहता जी की कवितायें पढ़ रही हूँ!    एक सचेत कवि  के रूप में वे बहुत प्रभावित करते हैं!  उनके यहाँ प्रेम किसी भी प्रकार के आडम्बर से मुक्त, अपने सरल, सहज रूप में हौले से आपको छू लेता है!  आज जब प्रेम कविताओं ही नहीं जीवन से भी दुर्लभ होते जा रहा, ये कवितायेँ सुखद वासंती बयार सी ताज़गी लिए हुए हैं!  आज वैलेंटाइन डे के अवसर पर उनकी कुछ कविताएँ जिनमें छोटी प्रेम कवितायें शामिल हैं, यकीनन पढ़ी जानी चाहिए .....




जन्मदिन


मुझे पता है
अपने जन्मदिन पर
उसे क्या चाहिए

असंख्य संख्याओं से भरे
मेरे स्मृति कोष में
बनी रहे
यह एक छोटी सी तारीख़
और ऐन वक्त पर
किसी खरगोश की तरह उछलते हुए
निकल आये बाहर
और उसे चौंका दे ....

मुझे पता है
अपने जन्मदिन पर
उसे बस इतना चाहिए ।
(पत्नी के लिए)






एक छोटी सी प्रेम कविता

कुछ कहा मैंने
कुछ उसने सुना
फिर धीरे - धीरे
डूबती चली गई ...भाषा
साँसों के समंदर में -
हम देर तक
मनाते रहे जश्न
भाषा के डूबने का ।



प्रेम

अक्सर लौटता हूँ घर
धुल और पसीने से लथपथ
अपनी नाकामियों के साथ
थका - हारा

वह मुस्कराते हुए
एक कप चाय के साथ
सिर्फ थकान के बारे में पूछती है
और मैं भूल जाता हूँ
अपनी हार ।





 शरणार्थी शिविर

अपने सिर पर
बचे - खुचे अर्थ की
गठरी उठाये
कुछ शब्द आये

सहमते - सहमते
आया कुछ विस्थापित सौंदर्य
कुछ विस्थापित सत्य आये

कविता के शरणार्थी शिविर में
सब आये
कवि के पीछे - पीछे
भाषा के बीहड़ में ।



गौरैया

स्कूल गई है गौरैया
अभी घर में पसरा है सन्नाटा
पौने तीन बजे होगी छुट्टी
तीन बजे तक लौटेगी गौरैया

आते ही फेंकेगी अपने जूते
बारामदे में
और बस्ता
ड्राइंगरूम में
( कभी - कभार इसके ठीक उलट
बस्ता बारामदे में
और जूते ड्राइंगरूम में )

कैसा रहा स्कूल ? पूछेगी उसकी माँ ...
तिरछी नज़रों से देखेगी
अपनी माँ को
फिर झटकेगी अपने पंखों से
मरे हुए शब्दों की धूल
और मुस्करायेगी ....

और फिर
चहक उठेगा पूरा घर
बस आती होगी गौरैया ।


 छुटकी

आठ साल की छुटकी
अपने से दस साल बड़े
अपने भाई के साथ
बराबरी से झगड़ रही है

छीना-झपटी
खींचा-खांची
नोचा -नाचीं
यहाँ तक की मारा -पीटी भी

उसकी माँ नाराज है
इस नकचढ़ी छुटकी से
बराबरी से जो लडती है
अपने भाई के साथ

वह मुझसे भी नाराज है
सर चढ़ा रखा है मैंने उसे
मैं ही बना रहा हूँ उसे लड़ाकू

शायद समझती नहीं
कि ज़िन्दगी के घने बीहड़ से होकर
गुजरना है उसे

इस वक्त
खेल- खेल में जो सीख लेगी
थोड़ा बहुत लड़ना भिड़ना
ज़िन्दगी भर उसके काम आयेगा  ।



थोड़ी सी भाषा

बच्चों से बतियाते हुए
अंदर बची रह जाती है
थोड़ी - सी भाषा
बची रह जाती है
थोड़ी - सी भाषा
प्रार्थना के बाद भी ।

थोड़ी - सी भाषा
बच ही जाती है
अपने अंतरंग मित्र को
दुखड़ा सुनाने के बाद भी ।

किसी को विदा करते वक़्त
जब अचानक आ जाती है
प्लेटफॉर्म पर धड़धड़ाती हुई ट्रेन
तो शोर में बिखर जाती है
थोड़ी - सी भाषा ...
चली जाती है थोड़ी - सी भाषा
किसी के साथ
फिर भी बची रह जाती है
थोड़ी - सी भाषा
घर के लिए ।

जब भी कुछ कहने की कोशिश करता हूँ
वह रख देती है
अपने थरथराते होंठ
मेरे होंठो पर
थोड़ी - सी भाषा
फिर बची रह जाती है ।

दिन भर बोलता रहता हूँ
कुछ न कुछ
फिर भी बचा रहता है
बहुत कुछ  अनकहा
बची रहती है
थोड़ी - सी भाषा
इस तरह  ।

अब देखो न !
कहाँ - कहाँ से
कैसे - कैसे बचाकर लाया हूँ
थोड़ी - सी भाषा
कविता के लिए ।


कविता

बस जाने ही वाला था
नींद के आग़ोश में
कि अचानक
जेहन में चमकती है
कविता की एक पंक्ति ....
रोशनी से भर जाता है जेहन
रोशनी में नहा जाती है नींद
और सपने तरबतर हो जाते हैं
रोशनी से ....
लफ़्ज़ों का दरिया
बहाए लिए जाता है मुझे
किसी सुबह की चट्टान पर
पटकने को बेताब ।

 ************

परिचय 

जन्म  : 02 मई 1967 ,
           सिरोंज (विदिशा) म. प्र.

शिक्षा : अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर
            और शोध उपाधि

प्रकाशन : देश की महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्र - पत्रिकाओं ( पहल , वसुधा , अक्षर पर्व ,  समावर्तन , नया पथ , वागर्थ , बया , आदि ) में कवितायेँ तथा अनुवाद प्रकाशित ।
वर्ष 2003 में म. प्र. साहित्य अकादमी के सहयोग से कविता संग्रह ' कस्बे का कवि एवं अन्य कवितायेँ ' प्रकाशित ।वर्ष 2012 में रोमेनियन कवि मारिन सोरेसक्यू की कविताओं की अनुवाद पुस्तक  ' एक सीढ़ी आकाश के लिए ' उद्भावना से प्रकाशित ।वर्ष 2013 में अंतिका से कविता संग्रह  " शायद " प्रकाशित ।इसी संग्रह पर म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा वागीश्वरी पुरस्कार।  कुछ कवितायेँ उर्दू , मराठी और पंजाबी में अनूदित ।


4 comments:

  1. शुक्रिया स्वयंसिद्धा ...शुक्रिया अंजू जी ।कुछ नए पाठकों तक मेरी कविता पहुंचेगी ...यह ख़याल मुझे रोमांचित कर रहा है ।कविता के सभी सुधि पाठकों की प्रतिक्रिया और सुझाव की प्रतीक्षा रहेगी ~ मणि मोहन

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  2. मणि मोहन की कविताएँ मुझे परिचित मित्र सी लगती हैं। यहाँ दी गईं सभी कविताएँ बहुत सुन्दर और सहज हैं। प्रभावित करती हैं।

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  3. शुक्रिया राजेश्वर जी ...हौंसला मिला ।

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  4. आज 21/फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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