Saturday, March 28, 2015

अनुपमा तिवाड़ी की कवितायें





अनुपमा तिवाड़ी की कवितायें अपने समय का सजग पाठ हैं, एकालाप नहीं, जो तमाम विसंगतियों के भंवर में भी जीवन के बचे रहने और निर्बाध बढ़ते रहने की सम्भावना को रेखांकित करती हैं!  उनकी कवितायें उम्मीद का सिरा थामे हुए आगंतुक समय का स्वागत करती है, बढ़ती उम्र का भी और तयशुदा परिधि को तोड़ती महिलाओं का भी, जो अपने होने का उत्सव मनाती हैं!   ये कवितायें लगातार अपनी सार्थकता को परिभाषित करती हुई नए प्रश्नों के उत्तर तलाशती हैं, चाहे वह लिखने का कारण ही क्यों न हो!  आइये पढ़ते हैं अनुपमा जी की कुछ ऐसी ही कवितायें………




स्त्रियाँ कभी बूढी नहीं होतीं

स्त्रियाँ कभी बूढी नहीं होतीं
हर दिन टांची लगते रहने से
उनकी देह मूर्ती बनने लगती है
दिन - ब - दिन.
बढती उम्र,
के साथ देह का सारा प्रेम
सिमट कर आ जाता है आँखों में
फिर फैलता है
सारी देह में.
छलकता है देह से रंग - रंग.
बढती उम्र,
की स्त्रियों की अंटी में
बिना टके भी होता है खजाना.
बढती उम्र,
की स्त्रियों के आँचल में होता है
भरपूर अमलतास और पलाश.
बढती उम्र,
की स्त्रियाँ
वसंत से पकते हुए बनती हैं फागुन
बढती उम्र,
की स्त्रियाँ
निखरती जाती हैं
दिन - ब - दिन
खूबसूरत होती जाती हैं
ठीक मेरी तरह !
 

जो किनारे पर खड़े हैं ....

जो किनारे पर खड़े हैं
वही सबसे पहले डूबेंगे ।
सबसे पहले उनकी नौकरियाँ जाएँगी
सबसे पहले उन्हीं की बस्तियाँ,
आग के हवाले होंगी ।
सबसे पहले वही विस्थापन के नाम पर
धकेले जाएँगे
यहाँ - वहाँ, वहाँ - यहाँ पर कहीं नहीं।
सबसे पहले उन्हीं की गलतियाँ अक्षम्य होंगीं
सबसे पहले उन्हीं की माँ - बहन बलात्कार की शिकार होंगी
रोंदी जाएँगी, कुचली जाएँगी और अंततः मार दी जाएँगी
ये किनारों पर खड़े आदमी
नहीं डरते हैं,
प्राकृतिक विपदाओं से
नहीं डरते हैं
किसी अज्ञात ताकत से
इन्हें डर है,
आदमी की ताकत का ।
कितना डर है, एक आदमी को, एक आदमी से ।
क्या तुम भी किसी से डरते हो ?
यदि डरते हो
तो वह आदमी नहीं है
जिससे तुम डरते हो ।




जुमला तोड़ती औरतें

दर्द के समंदर
में डूबी
औरतें,
स्वागत करती हैं
हर उस नई
औरत का
जो डूबने आती है
इस नए समंदर में ।
चाहे वैश्यालय में
आई कोई नवयौवना हो
या घर से दूर
कामकाजी कोई स्त्री हो।
वह गहरे से जी चुकी होती हैं
उस दर्द को
जिस में डूब कर वो बनी हैं फौलाद
जिनके आँसू भी हो चुके हैं
अब गाढे
जो दिखते नहीं कच्चे आंसुओं से
वो तोड़ती हैं
जुमला कि
" औरत ही औरत कि दुश्मन होती है” ।

कोई क्यों लिखता है कविता ?

कि, मैं क्यों लिखती हूँ कविता ?
किसी ने काम तो नहीं दिया कविता लिखने का
पर फिर भी मैं लिखती हूँ कविता.
कविता ने ही सिखाया
उगते सूरज से ही नहीं,
स्लेटी रूई के फाहों जैसे बादलों की पीछे ढलते सूरज से भी प्यार करना.
कविता ने ही सिखाया,
चिड़ियों को भी शुभकामनाएं देना
कि चिड़ियों, तुम उडो उन्मुक्त आकाश में,
अनंत काल तक,
तुम इतनी ही खुश रहना,
जितनी कि आज हो.
कविता ने ही उगते पेड़ों को देख,
जीवन में संभावनाएं देखना सिखाया
कभी कविता पैदा हुई,
बाहरी पीड़ा के प्रसव से
तो कभी,
भीतर बह रहे झरने की झर - झर से.
जब कभी मन हारा
तो कविता ही सिरहाने आ,
झिंझोड़ कर बोली
" पागल समूचा समाज एक हो जाता है
तो क्या सुकरात गलत हो जाता है ?
क्या ईसा गलत हो जाता है ?
कविता है, तो तू है
कविता नहीं, तो तू भी नहीं !
तुम दोनों पर्याय हो एकदूसरे के".
शायद इसलिये लिखती हूँ
मैं कविता,
शायद इसलिए लिखता है
कोई कविता !
यूँ ही नहीं लिखता कोई कविता,
यूँ ही नहीं लिखता कोई कविता ........





 
सर्वश्रेष्ठ तो हो चुका

रोको उन्हें,
जो नित नए चित्र / कार्टून बना रहे हैं
रोको उन्हें,
जो नित नए तरीके की कविता / गीत रच रहे हैं
रोको उन्हें,
जो सुन्दर दिख रहे हैं
रोको उन्हें,
जो प्रेम कर रहे हैं
और रोको उन्हें,
जो नया - नया सोच रहे हैं
नई - नई बात कर रहे हैं
रोको उन्हें भी,
जो चौराहों पर तुम्हें नंगा कर रहे हैं
रोको - रोको ,
सबको रोको ......
ये सब तुम्हारे धर्म के खिलाफ हैं
तुम्हारी संस्कृति के विरोध में हैं
ये सब तुम्हारी चूलें हिला रहे हैं
इन सबको रोकने से पहले
बस ये जान लेना कि
ये कभी रुकते नहीं
ये कभी मरते नहीं
और अगर
ये रुक गए
तो मानवों की एक नई पीढी पैदा होगी
जिसका रक्त नसों में दौड़ेगा नहीं,
नसों में रक्त रुका होगा !


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परिचय

नाम – अनुपमा तिवाड़ी
जन्मतिथि – 30 जुलाई 1966
जन्मस्थान – बांदीकुई ( दौसा ), राजस्थान
माता – पिता – मायारानी तिवाड़ी एवं विजय कुमार तिवाड़ी
शिक्षा – हिंदी और समाजशास्त्र में एम. ए तथा पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातक.
कार्यानुभव – 1989 से शिक्षा जगत में बच्चों और राजकीय शिक्षकों के साथ अकादमिक संबलन के कार्य से जुडी रही हूँ साथ ही बाल अपचारी गृह के बच्चों, घर से निकले रेलवे प्लेटफॉर्म पर रहने वाले बच्चों, देह व्यापार में लिप्त परिवारों व शौचालयों में काम करने वाले परिवारों के बच्चों, तथा कामकाजी बच्चों के साथ उनकी शिक्षा व वंचितता पर काम करती रही हूँ वर्तमान में वर्ष 2011 से अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन राजस्थान में
हिंदी विषय की सन्दर्भ व्यक्ति के रूप में कार्यरत हूँ.

संलग्न – लेखन, पर्यावरण और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में.

रचनाकर्म – 1997 से लेखन की शुरूआत की. आस – पास के लोग, मुद्दों और स्वयं के जीवन ने लिखने के लिए प्रेरित किया. अभी तक पचास से अधिक देश भर की बीस से अधिक पत्र – पत्रिकाओं व पांच ई – मेगज़ीन में कविताएं और कहानियाँ प्रकाशित हुई हैं.

एक कविता संग्रह “आइना भीगता है“ 2011 में बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित.
पिछले कुछ वर्षों से आकाशवाणी, दूरदर्शन और कवि सम्मेलनों में भी शिरकत करती रही हूँ

पता – ए -  108, रामनगरिया जे डी ए स्कीम, एस के आई टी कॉलेज के पास, जगतपुरा, जयपुर 302017

फोन : 7742191212, 9413337759
Mail – anupamatiwari91@gmail.com

(सभी चित्र गूगल से लिए गए हैं)

3 comments:

  1. स्वयंसिद्धा आभारी हूँ !!

    अनुपमा तिवाड़ी

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  2. अच्छी कवितायेँ

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  3. वाक़ई दिलचस्प कविताएं हैं...!

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