जेहन में घुली नीम सी कड़वाहटें
वजूद में बढ़ती उदासियों की गलबहियां
अवसाद से शामों की बढ़ती मुलाकातें
ये तय करना मुश्किल है पहले कौन मरता है
प्रेम या सपने
प्रेम की दुनिया में पहले कदम और
जीवन में बसंत की आमद
का हर बार समानार्थी होना
जरूरी तो नहीं
वैवाहिक जीवन का
अगर होता कोई गेट पास
तो अनुभवों का माइक्रोस्कोप भी नहीं ढूंढ
सकता इस पर गारंटी या वारंटी
यह हर बार मुमकिन नहीं
कि मधुमास सदा घोल दे जीवन में
मधु भरे लम्हों का स्वाद
रिस जाता है मधु कलश
कभी कभी मास बीतने से ठीक पहले
प्रेम बदलता है समझौतों
की अंतहीन फेहरिस्त में
उम्मीदें लगा लेती हैं
छलावे का मुखौटा
सपने उस ट्रेन से हो जाते हैं
जो रेंगती है अनिश्चितता की पटरी पर
ढोते हुये तमाम डर और शंकाएँ
और नज़रों के ठीक सामने होते हैं
लौटने के तमाम धूमिल होते रास्ते
इस सफर में हर रात थोड़ा थोड़ा
पिघलती है मोम बनकर एक औरत
चुप्पी की कायनात से बाहर एक-एक कदम बढ़ाती
वह एक दिन झड़का देती है आत्मा से चिपकी बेबसी और लाचारी
आईने में खुद को चीन्हती
एक दिन उतार फेंकती है
स्वांग का लबादा
अपने भीतर से उगल देती है सारी आग
कि उसके हवाले कर सके उस ढेर को
जिन्हे कभी प्रेमपत्र कहा था
ठोकर पर रखती है कायनात
अपनी सालों पुरानी तस्वीर से बोलती है
"गुड मॉर्निंग"
तलाशती है अपने नाम का एक उगता सूरज
थामती है एक बड़ा सा कॉफी मग
और जहां खत्म हो जाना था दुनिया को
वही से शुरू होता है एक औरत का
अपना संसार ............
(फरवरी 2015 गाथान्तर महाकविता विशेषांक में प्रकशित)
वजूद में बढ़ती उदासियों की गलबहियां
अवसाद से शामों की बढ़ती मुलाकातें
ये तय करना मुश्किल है पहले कौन मरता है
प्रेम या सपने
प्रेम की दुनिया में पहले कदम और
जीवन में बसंत की आमद
का हर बार समानार्थी होना
जरूरी तो नहीं
वैवाहिक जीवन का
अगर होता कोई गेट पास
तो अनुभवों का माइक्रोस्कोप भी नहीं ढूंढ
सकता इस पर गारंटी या वारंटी
यह हर बार मुमकिन नहीं
कि मधुमास सदा घोल दे जीवन में
मधु भरे लम्हों का स्वाद
रिस जाता है मधु कलश
कभी कभी मास बीतने से ठीक पहले
प्रेम बदलता है समझौतों
की अंतहीन फेहरिस्त में
उम्मीदें लगा लेती हैं
छलावे का मुखौटा
सपने उस ट्रेन से हो जाते हैं
जो रेंगती है अनिश्चितता की पटरी पर
ढोते हुये तमाम डर और शंकाएँ
और नज़रों के ठीक सामने होते हैं
लौटने के तमाम धूमिल होते रास्ते
इस सफर में हर रात थोड़ा थोड़ा
पिघलती है मोम बनकर एक औरत
चुप्पी की कायनात से बाहर एक-एक कदम बढ़ाती
वह एक दिन झड़का देती है आत्मा से चिपकी बेबसी और लाचारी
आईने में खुद को चीन्हती
एक दिन उतार फेंकती है
स्वांग का लबादा
अपने भीतर से उगल देती है सारी आग
कि उसके हवाले कर सके उस ढेर को
जिन्हे कभी प्रेमपत्र कहा था
ठोकर पर रखती है कायनात
अपनी सालों पुरानी तस्वीर से बोलती है
"गुड मॉर्निंग"
तलाशती है अपने नाम का एक उगता सूरज
थामती है एक बड़ा सा कॉफी मग
और जहां खत्म हो जाना था दुनिया को
वही से शुरू होता है एक औरत का
अपना संसार ............
(फरवरी 2015 गाथान्तर महाकविता विशेषांक में प्रकशित)
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